SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 245
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तिङन्तः अभ्यासस्यादिव्यञ्जनमवशेष्यम् ॥१७१ ।। अभ्यासस्यादिव्यञ्जनमवशेष्यं भवति। अनादेलोप इत्यर्थः। जिहेति जिह्रीतः । स्वरादाविवर्णोवर्णान्तस्य धातोरियुवाविति इयादेश: । जिहियति । ओहाक् त्यागे। जहाति जहीत: । जहातेर्वा ॥१७२ ॥ जहाते: सार्वधातुके व्यञ्जनादावगुणे परे आकार इकारादेशो भवति वा 1 जहित: जहीत: जहति । जहासि। उभयेषामीकारो व्यञ्जनादावदः । जहीथ: जाहिथ: जहीथ जहिथ । जहामि जहीव: जहिव: जहीम: जहिमः । लोपः सप्तम्यां जहातेः ।।१७३ ।। __जहातेरन्तस्य लोपो भवति सप्तम्यां व्यञ्जनादावगुणे सार्वधातुके परे । जह्यात् जह्यातां जह्यः । जहातु जहीतात् जहितात् जहीतां अहिता जहतु। __ आत्वं वा हो ॥१७४ ।। जहातेरन्तस्य आत्वं ईत्वमित्वं च भवति वा हौ परे । जहाहि जहिहि जहीहि जहीतात् जहितात् जहीतं जहितं जहीत जहित । जहानि जहाव जहाम । अजहात् अजहीतां अहितां अबहुः । अजहा: अजहीतं अबहितं अजहीत अजहित । अजहां अजहिव अजहीव अजहिम अजहीम । इत्यादि । ऋ सू गतौ । पृ पालनपूरणयोः । तिपिपत्याश्च ॥१७५ ॥ अनयोरभ्यासस्य इन्दति सार्वधातुके परे। अभ्यास का आदि व्यंजन अवशेष रहता है।।१७१ ॥ अर्थात् आदि से बाद के रकार का लोप हो जाता है तब गुण होकर 'जिहेति' जिह्वीत: बना। जिही अति 'स्वरादाविवर्णोवर्णान्तस्य धातोरियुवौं' ८३ सूत्र से इय् आदेश होकर "जिहियति' बना । औहाक-त्याग करना। ‘हा हा ति' 'हो ज: सूत्र से अभ्यास को 'ज' होकर सूत्र १६० से ह्रस्व होकर 'जहाति' जहा तस् । सार्वधातुक व्यंजनादि अगुण विभक्ति के आने पर जहाति धातु के आकार को विकल्प से इकार हो जाता है ॥१७२ ॥ जहित, १५७वें सूत्र से ईकार होकर जहीत:' बना जहा । अन्ति १५८ से आकार को लोप होकर नकार का लोप होकर 'जहति' बना । 'ज हा यात्' सप्तमी में जहाति के अन्त का लोप हो जाता है ॥१७३ ॥ जह्यात् । जहातु जहितात, जहीतात् । ज हा हि। हि के आने पर जहाति के अन्त को 'आई और 'इ' हो जाता है ॥१७४ ॥ जहाहि, जहीहि, जहिहि । अजहात् । इत्यादि । ऊ सृ गति अर्थ में है। पृ धातु पालन और पूरण अर्थ में है। ऋकति । पृ पृ ति। सार्वधातुक में ऋ के अभ्यास को इकार हो जाता है ॥१७५ ॥ इऋति।
SR No.090251
Book TitleKatantra Roopmala
Original Sutra AuthorSharvavarma Acharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy