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कातन्त्ररूपमाला
पदान्ते रेफसकारयोर्विसृष्टो भवति । तौ भवतः । तथैव बहुत्व विवक्षायां प्रथमपुरुषबहुवचनं अन्ति । भू अन्ति इति स्थिते
असन्ध्यक्षरयोरस्य तौ तल्लोपश्च ।। २६ ॥ इह धातुप्रस्तावे अकारसन्ध्यक्षरयो: परतोऽकारस्य अकारसन्ध्यक्षरौ भवतस्तत्परयोलोंपो भवति । ते भवन्ति ।
युष्यदि मध्यमः ॥ २७॥ युष्मदि प्रयुज्यमानेऽप्रयुज्यमानेऽपि मध्यम: पुरुषो भवति । त्वं भवसि । युवां भवथः यूयं भवध ।
अस्मद्युत्तमः ॥ २८॥ अस्मदि प्रयुज्यमानेऽप्रयुज्यमानेऽपि उत्तमः पुरुषो भवति ।
अस्य वमोर्दीर्घः ।। २९ ।। अस्य दीर्घा भवति वमो: परतः । अहं भवामि । आवां भवावः । वयं भवामः । अप्रयुज्यमानेऽपि । भवति, भवतः भवन्ति । भवसि, भवथ;, भवथ । भवामि, भवाव: भवामः । भावकर्मविवक्षायां
आत्मनेपदानि भावकर्मणोः ॥ ३०॥
पद के अंत में रकार और सकार का विसर्ग हो जाता है अत: 'भवतः' बना । तौ भवतः-वे दोनों होते हैं । उसी प्रकार से बहुवचन की विवक्षा में प्रथमपुरुष को बहुवचन 'अन्ति' है। भू अन्ति यह स्थित है।
पूर्वोक्त अन् विकरण और गुण करके भव् अ अन्ति' है।
अकार और संध्यक्षर के परे अकार है उसका लोप हो जाता है ।। २६ ॥
यहाँ धातु के प्रस्ताव में अकार और संध्यक्षर के परे रहने पर अकार को अकार और संध्यक्षर हो जाते हैं और इनके परे अकार का लोप हो जाता है। अतः भवन्ति' बना 1 ते भवन्ति-वे होते हैं।
युष्मद् में मध्यम पुरुष होता है ॥ २७ ॥ युष्मद का प्रयोग करने पर अथवा नहीं प्रयोग करने पर भी मध्यम पुरुष होता है। उपर्युक्त विधि के अनुसार सि थस् थ विभक्ति में-त्वं भवसि—-तू होता है । युवां भवथ:-तुम दोनों होते हो । यूयं भवथ-तुम सब होते हो।
अस्मद् में उत्तम पुरुष होता है !॥ २८ ॥ अस्मद् का प्रयोग करने पर या नहीं प्रयोग करने पर भी उत्तम पुरुष होता है। भूमि है अन् विकरण गुण करके 'भव् अ मि' रहा।
व, म के आने पर अकार को दीर्घ हो जाता है ॥ २९ ॥ अत: 'भवामि' बना। अहं भवामि-मैं होता हूँ। आवां भवाव:- हम दोनों होते हैं। वयं भवामः- हम सब होते हैं। प्रथम, मध्यम, उत्तम पुरुष के प्रयोग नहीं करने पर भी अर्थ स्पष्ट रहता है। यथा— भवति भवतः भवन्ति, भवसि भवथः भवथ, भवामि भवाव: भवामः।
क्रिया में भाव और कर्म की विवक्षा के होने पर भाव, कर्म में 'आत्मनेपद' होता