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________________ कातन्त्ररूपमाला भृग्वादिभ्यो बहुत्वे विहितस्यास्यभिधेयस्य अपत्यप्रत्ययस्य लुग्भवति । भृगवः। अत्रय.। अङ्गिरस. । गोतमा इत्यादि । अस्त्रियामिति कि ? भार्गव्यः । णटकारानुबन्धादिति नदादित्वादीप्रत्ययः । गर्गस्यापत्यं इति स्थिते यो गर्गादेः ।।४८३ ।। गर्गादेर्गणाद् ण्यो भवति अपत्येऽभिधेये। डवर्णावर्णयोलोप: स्वरे प्रत्यये ये च ॥४७९ ॥ इवर्णावर्णयोलोपो भवति तद्धिते स्वरे ये च परे । गाय: । गाग्र्यो । वत्सस्यापत्यं वात्स्य: । वात्स्यौ। कौत्स्यः । कौत्स्यौ । बहुत्वे गर्गयस्कविदादीनां च ॥४८४॥ गर्गादीनां यस्कादीनां विवादीनां च बहुत्वे विहितस्य अस्त्र्यभिधेयस्य अपत्यप्रत्ययस्य लुग्भवति । गर्गा: । वत्साः । कुत्साः । उभयत्र ण्यो लुक् । ऊर्वाः । यस्का: । विदा: । अणो लुक् । इत्यादि । कुर्वादेर्यण् ।।४८५ ॥ अनः भगोरपत्यानि राष्ट्र बनाएका हा लोप होकर उसके निमित्त से होने वाली वृद्धि का भी लोप हो गया। अपत्यानि अत्रयः, अंगिरसस्यापत्यानि अंगिरस: गोतमस्यापत्यानि गोतमा: इत्यादि । सूत्र में 'अस्त्रियां' ऐसा क्यों कहा ? भृगोरपत्यानि स्त्रीलिगे वाचके भार्गव्य: बन गया । ण् अनुबंध और टकार का अनुबंध होने से नदादि गण में कहे जाने से स्त्रीलिगवाची 'ई' प्रत्यय हो गया है। गर्गस्यापत्यं ऐमा विग्रह है। ___ गर्गादि गण से अपत्य अर्थ में 'ण्य' प्रत्यय होता है ॥४८३ ॥ गर्ग + ङस विभक्ति का लोप होकर ण्य प्रत्यय में कार का अनुबंध होकर णानुबंध से पूर्व स्वर को वृद्धि हुई 'गार्ग य' रहा। स्वर प्रत्यय और यकार प्रत्यय के आने पर इ वर्ण अ वर्ण का लोप हो जाता है॥४७९ ॥ यहाँ पूर्व के अकार का लोप होकर गार्ग्य बना । लिग संज्ञा होकर विभक्ति आकर 'गाय' द्विवचन में 'गाग्र्यो' बना । वत्सस्यापत्यं वात्स्य: वात्स्यो, कुत्सस्यापत्य कौत्स्य: कौत्स्यौ । बहुवचन में.. . गर्गादि, यस्कादि और विवादि बहुवचन में किये गये स्त्रीलिंग रहित अपत्य प्रत्यय का 'लुक्' हो जाता है ।।४८४ ॥ अपत्य प्रत्यय का लोप होकर गर्गाः, वत्सा:, कुत्सा; बना इन दोनों में 'ण्य' का लोप हुआ है। उर्वाः, यस्का: विदा: यहाँ अण् प्रत्यय का लोप हुआ है। कुरु आदि से यण् प्रत्यय हो जाता है ।।४८५ ॥ कुरु आदि गण से अपत्य अर्थ में यण् प्रत्यय होता है । कुरो: अपत्यं कौरव्य: । लहस्यापत्यं साह्यः ।। १. यह सूत्र पहले आ चुका है।
SR No.090251
Book TitleKatantra Roopmala
Original Sutra AuthorSharvavarma Acharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size10 MB
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