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तद्धितं
देशसमाननामान: क्षत्रिया रूहाः । रूढशब्दात्परो अण् प्रत्ययो भवति अपत्येऽभिधेये । इवर्णावर्णयोर्लोपः स्वरे प्रत्यये ये च ॥४७९ ॥
इवर्णावर्णयोर्लोपो भवति तद्धिते स्वरे ये च परे । पाञ्चालः । पञ्चालस्यापत्ये पाञ्चालौ । बहुत्वेरूहानां बहुत्वेऽस्त्रियामपत्यप्रत्ययस्य ॥४८० ।।
रूढानां बहुत्वे विहितस्योस्त्र्यभिधेयस्य अपत्यप्रत्ययस्य लुग्भवति । निमित्ताभावे नैमित्तिकाभाव इति वृद्धेरपि लोपो भवति । पाञ्चालाः । एवं विदेहाः । मगधाः । अङ्गाः । अस्त्रियामिति किं ? पाश्चाल्यः । वैदेह्यः । मागध्यः । इत्यादि । भृगोरपत्यं ।
ऋषिभ्योऽण् ॥ ४८१ ॥
ऋषिवाचिभ्यः परोऽण् भवति अपत्येऽर्थे । भार्गवः । भार्गवौ । बहुत्वे
भृग्वत्र्यङ्गिरस्कुत्सवसिष्ठगोतमेभ्यश्च
॥४८२ ॥
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पञ्चालस्यापत्यम् । जनपद समय नाम वाले क्षत्रिय रूढ कहलाते हैं। पुत्र के वाच्य अर्थ में रूढ शब्द से अण् प्रत्यय होता है। अतः यहाँ ।
पचाल + ङस् विभक्ति का लोप, पञ्चाल + अ वृद्धि होकर पाञ्चाल अ,
तद्धि के स्वर और यकार प्रत्यय के आने पर इवर्ण और अवर्ण का लोप हो जाता है ॥ ४७९ ॥
तब पाश्चाल् + अ = पाञ्चाल बना पुनः लिंग संज्ञा होकर सि विभक्ति आकर 'पाश्चालः' बना । द्विवचन में दो पुत्र के वाचक द्विवचन में - पञ्चालस्थापत्ये -- पाञ्चालौ बना बहुवचन में अपत्य प्रत्यय करके पश्चास्यापत्यानि 'पाञ्चाल' बना |
रूद शब्दों के बहुवचन में किया गया अपत्य प्रत्यय यदि स्त्रीलिंग में नहीं है तो उस प्रत्यय का लुक् हो जाता है ॥४८० ॥
एवं अपत्य प्रत्यय का लोप होने पर उसके निमित्त से जो पूर्व स्वर को वृद्धि हुई थी उसका भी लोप हो गया क्योंकि 'निमित्त के अभाव में नैमित्तिक का भी अभाव हो जाता है' ऐसा नियम है। अतः 'पञ्चाल' रहा। लिंग संज्ञा और जस् विभक्ति आकर 'पञ्चाला:' बना अर्थ वही निकलेगा कि पञ्चाल राजा के बहुत से लड़के। ऐसे बहुवचन में विदेहस्यापत्यानि 'विदेहा: ' मगधस्यापत्यानि मगधाः अंगस्यापत्यानि अंगाः । सूत्र में स्त्रीलिंग को छोड़कर ऐसा क्यों कहा ? तो जैसे पञ्चाल - स्थापत्यं कन्या स्त्रीलिंग (लड़की वाचक) में पाञ्चाली द्विवचन में पाञ्चाल्यौ, बहुवचन में पाञ्चाल्य: बनेगा यहाँ कन्या वाचक प्रत्यय में बहुवचन के प्रत्यय का लोप नहीं होगा। विदेहस्यापत्यानि कन्याः स्त्रीलिंगे 'वैदेह्य:' मगधस्यापत्यानि कन्या: मागध्यः इत्यादि । अर्थात् स्त्रीलिंग वाचक अपत्यप्रत्यय यदि बहुवचन में आता है तो उसका लोप नहीं होता है।
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भृगोरपत्यं, हैं ।
अपत्य अर्थ में ऋषिवाची शब्द से परे अण् प्रत्यय होता है ||४८१ ॥ भार्गव, भार्गव, बहुवचन में
भृगु, अत्रि, अंगिरस्, कुत्स, वसिष्ठ गोतम से बहुवचन में किये गये स्त्रीलिंग रहित अपत्य प्रत्यय को 'लुक्' हो जाता है ||४८२ ॥