SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समास: १५७ स्यातां यदि पदे द्वे तु यदि वा स्युर्बहून्यपि तान्यन्यस्य पदस्यार्थे बहुव्रीहिः ॥४३६ ।। 1 यत्र समासे द्वे पदे यदि वा स्यातां बहूनि वा स्युरन्यपदार्थे समस्यन्ते स समासो बहुव्रीहिर्भवति। आरूढवानरः । ऊढर!: । उपहतपशुः . तित: तिः पीरपुर यो : ' लम्बकर्ण: । दीर्घबाहुः । बहुपदानामपि । बहवो मत्ता मातङ्गा यस्मिन् वने तत् बहुमत्तमातङ्गं वनं । बहूनि रसवन्ति फलानि यस्मिन् वृक्षे स बहरसवत्फलो वृक्षः। व्यञ्जनान्तस्य यत्सभोरिति न्यायात् अनुषङ्गालोपः। उपगता दश येषां ते उपगतदशा: । एवमासन्ना दश येषां ते आसनदशा: । अदूरा दश येषां ते अदूरदशा: । अधिका दश येषां ते अधिकदशा: । पुत्रेण सह आगत: सपुत्र: सहपुत्रः । सहस्य सो बहुव्रीहौ वा ॥४३७ ॥ चित्रा गावो यस्य-चित्रविचित्र हैं गायें जिसकी (ऐसा वह मनुष्य) । वीरा: पुरुषा यस्मिन्-वीर पुरुष हैं जिसमें (ऐसा वह देश) । लम्बौ करें यस्य-लंबे हैं दो कान जिसके (ऐसा वह मनुष्य)। दीपों बाहू यस्य-दीर्घ हैं दोनों भुजायें जिसकी (ऐसा वह मनुष्य)। धीराः पुरुषा यस्मिन्–धीर पुरुष हैं जहाँ पर (ऐसा वह देश ) । इस प्रकार से बहुवीहि समास का विग्रह हुआ। जिस समास में दो पद होवें अथवा बहुत पद होवें और पदों का अन्य पद के अर्थ में समास होवे तो वह समास 'बहुव्रीहि' कहलाता है ।।४३६ ॥ आरूढ़ +सि वानर+सि बाकी यं वृक्षं अप्रयोगी है। विभक्ति का लोप, लिंग संज्ञा, पुन: विभक्ति आकर 'आरूढवानरः' बना। ऊळ+सि रथ+सि 'येन' शब्द अप्रयोगी है अन्य पदार्थ है उसी अर्थ में समास होता है विभक्ति का लोप, लिंग संज्ञा होकर 'ऊढरथ:' बना। ऐसे ही उपर्युक्त पदों से उपहतपशुः । पतितपर्ण: । चित्रगुः । वीरपुरुष: देश: । लम्ब कर्ण: । दीर्घबाहुः । धीरपुरुष: देश: बन गये। यहाँ चित्रगो को 'गोरप्रधानस्य स्रियामादादीनां च ४२६ सूत्र से ह्रस्व करके 'चित्रगुः बनाया है।' बहुत पदों में भी इस समास के उदाहरण-बहवो मत्ता मातंगा: यस्मिन् वने ऐसा विग्रह होकर बहु + जस् मत्त+ जस् मातंग+जस् विभक्तियों का लोप होकर 'बहुमत्तमातंग' बना । पुन: लिंग संज्ञा होकर नपुंसक लिंग में 'सि' विभक्ति से रूप बनकर 'बहुमत्तमातंगं वनं' बना । बहूनि रसवन्ति फलानि यस्मिन् वृक्षे, बहु+जस् रसवन्त् + जस् फल+जस विभक्तियों का लोप होकर "व्यंजनान्तस्य यत्सुभोः” इस ४३०वें सूत्र से अनुषंग का लोप होकर 'बहुरसवत्फल' रहा लिंग संज्ञा होकर विभक्ति आकर वृक्ष का विशेषण होने से पुल्लिग में 'बहुरसवत्फल:' बना। ऐसे ही उपगता दश येषां ते । उपगत+ जस् दशन्+जस् विभक्ति का लोप, लिंग संज्ञा, जस् विभक्ति आकर उपगतदशन् बना यहाँ 'समासांतर्गतानां वा राजादीनामदन्तता' सूत्र से दशन् शब्द को अकारांत होकर 'उपगतदशाः' बना है । ऐसे ही आसन्ना दश येषां ते-आसन्ना दशा: । अदूरा दश येषां ते अदूरदशा: । अधिका दश येषां ते-अधिकदशाः। पुत्रेण सह आगत: ऐसा विग्रह है। बहुव्रीहि समास में सह शब्द को विकल्प से सकार हो जाता है ॥४३७ ॥
SR No.090251
Book TitleKatantra Roopmala
Original Sutra AuthorSharvavarma Acharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy