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________________ कारकाणि १४९ अधिपूर्वाणां शीङ् स्था आसु इत्येतेषां प्रयोगे अधिकरणे द्वितीया भवति । ग्राममधिशेते । ग्राममधितिष्ठति । ग्राममध्यास्ते । ग्रामे आस्त इत्यर्थः । उपान्वध्यावसः ।।४१७ ।। उप अनु अधि आयूर्वस्य वसु इत्येतस्य धातोः प्रयोगे अधिकरणे द्वितीया भवति । ग्राममुपवसति । ग्राममनुवसति । ग्राममधिवसति । ग्राममावसति । ग्रामे वसतीत्यर्थ:। सति च॥४१८॥ सत्यर्थे वर्तमानाल्लिङ्गात्सप्तमी भवति । दाने सति भोगः । ज्ञाने सति मोक्ष: । इत्यादि । निमित्तात्कर्मणि ॥४१९॥ निमित्तभूताल्लिङ्गात्सप्तमी भवति कर्मणि युक्ते। चर्मणि दीपिनं हन्ति दन्तयोर्हन्ति कुञ्जरम्। केशेषु चमरी हन्ति सीम्नि पुष्कलको हत: ॥१।। मुक्तौ चित्तत्वमव्येति स्वर्मुक्त्योर्जिनमर्चति । गुणेषु गुरुमाप्नोति गोप: पयसि दोग्धि गाम् ।।२।। संप्रदानम्पादाने करणाधारको तथा। कर्म कर्ता कारकाणि षट् संबन्धस्तु सप्तमः ॥३ ।। इति कारकप्रकरणं समाप्तम् । ग्राममधितिष्ठति गाँव में रहता है। ग्राममध्यास्ते गाँव में बैठता है। ग्राम में रहता है ऐसा ही सभी का अर्थ है । उप, अनु, अधि, आङ् पूर्वक वस् धातु के प्रयोग में अधिकरण में द्वितीया होती है ॥४१७ ।। ग्राममुपवसति, अनुवसति, अधिवसति, आवसति-सभी का अर्थ है कि ग्राम में रहता है। सति अर्थ में सप्तमी होती है ॥४१८ ॥ दाने सति भोग:-दान के होने पर भोग होता है, ज्ञाने सति मोक्ष:-ज्ञान के होने पर मोक्ष होता है । इत्यादि। निमित्त भत लिंग से कर्म से सप्तमी होती है ॥४१९॥ श्लोकार्थ-चर्म के लिए दीपि व्याघ्र को मारता है। दो दांत के लिये हाथी को मारता है। केशों के निमित्त चमरी गाय को मारता है और कस्तूरी के लिये पुष्कलक 'गन्धवान् मृग' को मारता है ॥१॥ मुक्ति के लिये चित्त का निरोध रूप ध्यान करता है और स्वर्ग, मोक्ष के लिये जिनेन्द्र भगवान् की अर्चना करता है। गुणों के लिये गुरु को प्राप्त करता है एवं दूध के निमित्त ग्वाला गाया को दुहता है ॥२॥ संप्रदान, अपादान, करण, अधिकरण, कर्म और कर्ता ये छह कारक हैं एवं सातवाँ सम्बन्ध कारक है। इस प्रकार से कारक प्रकरण समाप्त हुआ। १. यह सातवाँ सम्बन्ध मात्र है अतः कारक नहीं है; क्योंकि इसका क्रिया के साथ साक्षात् योग नहीं है और न यह क्रिया का जनक ही है । अतएव कारक षट् ही माने जाते हैं (साक्षात् क्रियाजनकत्वं कारकत्वम्)।
SR No.090251
Book TitleKatantra Roopmala
Original Sutra AuthorSharvavarma Acharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size10 MB
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