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कारकाणि
मन्यकर्मणि चानादरेऽप्राणिनि ॥ ३८७ ॥
अनावरे कि ?
प्राणिगणवर्जिते मन्यतेः कर्मणि द्वितीयाचतुर्थ्यो भवतः अनादरे गम्यमाने । न त्वां तृणं मन्ये न त्वां तृणाय मन्ये । न त्वां बुषं मन्ये, न त्वां शुरू सन्ये । पदं मन्ये । पाषाणं रलं मन्ये । अप्राणिनीति कि ? न त्वां नावं मन्ये । न त्वामन्त्रं मन्ये । न त्वां काकं मन्ये । न त्वां शुकं मन्ये । न त्वां शृगालं मन्ये नौ अन्न काक शुक शृगाला एते प्राणिनो वैयाकरणजनानां । इह स्यादेव - वन त्वां श्वानं मन्ये, न त्वां शुने मन्ये ।
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कस्मिन्नर्थे तृतीया ? करणे तृतीया । किं करणं ?
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येन क्रियते तत्करणम् ३८८ ।।
येन क्रियते तत्कारकं करणसंज्ञं भवति । दात्रेण लुनाति । कराभ्यां हन्ति । वाणैर्विध्यति । दिवः कर्म च ।। ३८९ ॥
दिवधातोः प्रयोगे करणे द्वितीया भवति । अक्षान् दीव्यति । अक्षैदव्यतीत्यर्थः । तृतीया सहयोगे || ३९० ।।
हार्थेन योगे लिङ्गातृतीया भवति । पुत्रेण सह आगतः । त्यागसत्ताभ्यां सार्धं विराजते । सौर्यगुणैः साकमेधते यशः । इत्यादि ।
प्राणीगण से वर्जित अनादर अर्थ में मन्य धातु के योग से कर्म अर्थ में द्वितीया और चतुर्थी दोनों हो जाते हैं ॥ ३८७ ॥
जैसे—न त्वां तृणं मन्ये, न त्वां तृणाय मन्ये--- मैं तुमको तृण भी नहीं समझता हूँ । इत्यादि । अनादर अर्थ क्यों कहा ? जैसे 'अश्मानं दृषदं मन्ये' - पाषाणं रलं मन्ये- मैं पत्थर को रत्न समझता हूँ । यहाँ अनादर अर्थ न होने से चतुर्थी नहीं हुई। 'प्राणीगण को छोड़कर ऐसा क्यों कहा ? न त्वां नावं मन्ये – मैं तुमको नाव नहीं मानता हूँ। प्राणीगण में कितने शब्द आते हैं ? नौ अत्र, काक, शुक और शृगाल वैयाकरणों के यहाँ इन पाँच को प्राणीगण से लिया है। मतलब इनके योग में मन्य धातु के प्रयोग में चतुर्थी न होकर द्वितीया ही रहती है।
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किस अर्थ में तृतीया होती हैं ? करण अर्थ में तृतीया होती है। करण किसे कहते हैं ?
जिसके द्वारा क्रिया की जाय वह करण है
॥ ३८८ ॥
जिसके द्वारा क्रिया की जाती हैं वह कारक करण संज्ञक कहलाता है। यथा - दात्रेण लुनाति — दांतिया से काटता है ।
कराभ्याम् हंति — दोनों हाथों से मारता है। वाणैविध्यति वाणों से वेधन करता है। विधातु के योग में करण अर्थ में द्वितीया हो जाती है ॥ ३८९ ॥
इस सूत्र में च शब्द है अतः सूत्र का अर्थ दिवधातु के योग में द्वितीया और तृतीया दोनों होती है ऐसा अर्थ होना चाहिए ।
यथा -- अक्षान् दीव्यति - पाशों से खेलता है। इसमें द्वितीया विभक्ति होकर भी अर्थ तृतीया का ही निकलता
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सह अर्थ के योग में तृतीया होती है ॥ ३९० ॥
सह के पर्यायवाचक जो शब्द उनके योग में तृतीया होती है ऐसा अर्थ है अतः समम् सार्धम् के योग में भी तृतीया होती है बन्धुना सार्थम् गच्छति । यथा- पुत्रेण सह आगतः पुत्र के साथ आया । त्याग सत्ताभ्याम् सार्धं विराजते- वह त्याग और सत्ता से शोभित होता है।