SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज ( १४ ) विशेष :- ( १ ) पूर्वकथित १७८ गाथाओं में तेरहवीं और चौदहवीं गाथाओं को जोड़ने पर १८० गाथा होती हैं, जिनका उल्लेख गंथकार ने दूसरी गायामें किया था। इनमें द्वादश सम्बन्ध गाथा, श्रद्धापरिमाण का निर्देश करने को कही गई छह गाथा, प्रकृति संक्रम में आई पैंतीस वृत्ति गाथाओं को जोड़ने पर [ १७८ + २ + १२ + ६ + ३५ = २३३ ] दो सौ तेतीस गाथाएँ होती हैं । चौदहवीं गाथामें 'दंसण चरित्रमोहे पद पर प्रकाश डालते हुए प्राचार्य वीरसेन ने कहा है 'पूर्वोक्त पंचदश अधिकार दर्शन और चारित्र मोहके विषय में होते हैं, ऐसा अर्थ ग्रहण करना चाहिये । "देण एत्थ कसा पाहुडे सेस- सत्तण्हं कम्माणं परुवणात्थिति भणिदं होदि " - इस कथनसे यह भी बात विदित होती हैं कि इस कपायप्रासत में मोहनीय को छोड़ शेष सात कर्मों की प्ररूपणा नहीं है। 'पेज्जदोस' अर्थात् राग और द्वेष का लक्षण जीव के भाव का विनाश करना है; इससे उन दोनों को कषाय शब्द द्वारा कहा जाता हैं । कषाय का निरुपण करने वाला प्राभृत [ शास्त्र ] कषायपाहुड है । ( २ ) यह कषाय-- प्रामृत संज्ञा नय की अपेक्षा उत्पन्न हुई है। यह संज्ञा द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा से है । यदि यह संज्ञा द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा न मानी जाय, तो पेज्ज और दोस इन दोनों का एक कषाय ब्द के द्वारा एकीकरण नहीं किया जा सकता है । १. तासि पमाणमेदं १८० | पुणो एत्थ बारह संबंधगाहाल, २ श्रद्धापरिमाणणिद्द सणट्ट' भणिद-छ-गाहाओ ६, पुणो पर्याडसंकम्मि संकमउवक्कमविही० एस गाहापहूडि पणतीसं संकमवित्तिगाहाओ च ३५ । पुब्विल प्रसीदिसयगाहासु पक्खि गुणहराइरिय मुहकमलविणिग्गय सव्वगाहाणं समासो तेत्तीसाहिय- वे सदमेत्तो होदि २३३ । एसा सण्णा यदो पिप्पण्णा । कुदो ? दव्बट्टियणय-मवलंबिय समुष्णतादो ।
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy