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________________ चतुर्विधः" कृमिराग, कज्जल, कर्दम तथा धूलि के समान लोभ चार प्रकार का कहा है। उत्कृष्ट शक्तियुक्त लोभ कृमिराग सदृश है। वह नरकगति का कारण है। अनुत्कृष्ट लोभ अक्षमल के समान है। वह तिर्यचगति कोविक । अजय सोभा ओत ली समान है। वह मनुष्यात का हेतु है। जघन्य लोभ हल्दी के रंग समान है। यह देवगति का कारण है। कसाय पाहुड के व्यंजन अनुयोग द्वार में कोधादि के पर्यायवाची नामों की परिगणना इस प्रकार की गई है कोहो य कोव रामो य अक्खम संजला कलह वाढी य । झंझा दोस विवादो दस कोहयाट्टिया होति ॥८६॥ __ क्रोध, कोप, रोष, अक्षमा, संज्वलन, कलइ, वृद्धि, झंझा, द्वेष और विवाद ये क्रोध के एकार्थवाची दस नाम हैं। __प्रत्येक नाम विशेष अर्थ का ज्ञापक है। उदाहरणार्थ क्रोध को वृद्धि संज्ञाप्रदान की गई। इसका स्पष्टीकररम् जयधवला टीका में इस प्रकार किया है। 'वर्धन्तेऽस्मात पापाशयः कलहवैरादय इदि घृद्धिःइसस पापभाव, कलह, चैरादि की वृद्धि होती है। इससे क्रोध को वृद्धि कहा है। इस विषय में इस ग्रंथ के पृष्ठ ११७ पर विशेष प्रकाश डाला गया है। मान के पर्यायवाची इस प्रकार हैं माण मद दप्प थंभो उक्कास पगास तध समुहस्सो। अत्तुक्करिसो परिभत्र उस्सिद दसलक्खरणो माणो ॥८७t मान, मद, दर्प, स्तंभ, पत्कर्ष, प्रकर्ष, समुत्कर्ष, भात्मीकर्ष, परिभव तथा उत्सिक्त ये दश नाम मान कषाय के हैं। -" माया के पर्यायवाची नाम माया य मादिजागो णियदी विथ वंचणा अणुज्जुमदा। • गहणं मणुगण-मग्गण कक्क कुहक गृहणच्छएणो ॥८॥ माया, सातियोग, निकृति, वंचना, अनृजुता, ग्रहस, मनीन.. मार्गा, कल्क, कुहक, गृहन और छन्न ये माया के एकादश नाम हैं।
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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