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________________ मागस्वकीय स्थिति को प्राप्त होना उदय है। "यकर्म उदगावल्यां निक्षेप्तुमशक्य तदुपशांतं नाम"-जो कर्म उदयावली में निक्षिप्त करने में अशक्त है, उसे उपशम कहते हैं। "उदयावल्यां भिक्षप्तुं संक्रयितं चाशक्यं तनिधत्तिर्नाम". जो कम उदगावली में प्राप्त करने में तथा अन्य प्रकृति रूप में संक्रमण किए जाने में असमर्थ है, वह निर्धात्त है । "उदयायल्यां निक्षेप्तं संक्रमयितुमुत्कर्षे. यि अपकर्षयितु चाशक्यं तनिकाचितं नाम भवति"--- जो कर्म उदयावली में न लाया जा सके, संक्रमण, उत्कर्षण, अपकर्षण किए जाने को समर्थ नहीं है, वह निकाचित है। सात कर्मों में ये दशकरस पाये जाते हैं। प्रायु कर्म में संक्रमण नाम का करण नहीं पाया जाता है। अपूर्व करण गुणस्थान पर्यन्त दश करण होते हैं उससे आगे सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान पर्यन्त उपशांत, निकाचना और निर्धात्त को छोड़कर शेष मात करण कहे गए हैं। वहां भो संक्रमण फरण के बिना सयोगी पर्यन्त छह करण हैं। अयोगी के "सतं उदयं प्रजोगि ति"-सत्व और पदय मात्र होते हैं । उपशान्त कषाय गुणस्थान में मिथ्यात्व और मिश्र प्रकृति के परमाणुओं का सम्यक्त्व प्रकृतिरूप संक्रम होता है। शेष प्रकृतियों के छह करण होते हैं। मिश्न गुणस्थान को छोड़कर अप्रमत्तसंयत पर्यन्त आयु बिना पात तथा आयु सहित भाठ कर्मों का बंध होता है । मिश्र गुण स्थान अपूर्व करण तथा अनियतिकरण में श्रायु तथा मोह के यिना छह कर्म बंधते है। उपशांत कपाय, क्षीणकपाय तथा सयोगी जिनके एक चेदनीय का ही बंध होता है। "अबंधगो एकको".-एक अयोगी जिन श्रबंधक हैं। (गो.क.४५२) उदय की अपेक्षा दश गुणास्थान पर्यन्त पाठों कर्मों का उदय होता है। उपशान्त कपाय तथा क्षीणामोह गुणस्थानों में मोह को छोड़ सात कर्मों का उदय होता है । तेरहवें सयोगकेवली तथा चौदहवें अयोगी जिसके चार अधातिया कर्मों का ही उदय होता है। दीरणा के विषय में यह ज्ञातव्य है कि मोहनीय की उदीरमा सूक्ष्मसापराय गुणस्थान पर्यन्स होती है। ज्ञानावरण, दर्शनावरण सथा अंतराय की प्रदीरण। क्षीरशमोह गुणस्थान पर्यन्त होती है । वेदनीय और मायु की दारणा प्रमत्त संयत पर्यन्त होती है | नाम और गोत्र को भदीरणा सयोगी जिन पर्यन्त होती है। कर्मों की दश अवस्थानों पर ध्यान देने से यह स्पष्ट होता है, कि जीव के परिणामों के माश्रय से कर्म को हीन शक्ति युक्त अरवा
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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