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________________ 5 जयभु 1.4. झाला ( ५१ ) सामग्रीन कुडाणा सम्यक्त्व के द्वारा देव तथा मनुष्य गति मिलती है, ज्ञान के द्वारा यश का लाभ होता है तथा चारित्र से पूजापना मिलता है, किन्तु मोक्ष की प्राप्ति सम्यक्त्व, ज्ञान तथा चारित्र के द्वारा होती है। रयणसार में कुंदकुंद स्वामी का यह कथन सच्चे तत्वज्ञ को महत्वपूर्ण लगेगा : सीखने ईसारा गायणाणी | विज्जी मेसजमहं जाणे हृदि सम्मदे वाही ॥ ७२ ॥ 5-20 ज्ञानी पुरुष ज्ञान के प्रभाव से कर्मों का क्षय करता है यह कथन करने वाला अज्ञानी हैं। मैं वैध हूं. मैं श्रीषधि को जानता हूं क्या इतने जानने मात्र से व्याधि का निवारण हो जायेगा ? सम्यक्त्व सुर्गात का हेतु है यह कथन कुंकुंद स्वामी द्वारा समर्थित है : सम्मत्तगुणाइ सुम्ग मिच्छा दो होई दुग्गगई णियमा । इदि जाग किमिह बहुणा जं ते रुचेड़ तं कुणाहो || ६६ ॥ सम्यक्त्व के कारण सुगति तथा मिथ्यात्व से नियमतः कुगति होती है, ऐसा जानो । अधिक कहने से क्या प्रयोजन ? जो डुझ को रुचे वह कर | 1 ६ । २१ ) सूत्र द्वारा कहा इस विवेचन का यह अभ मूल्य नहीं है । रत्नत्रय स्कन्ध ज्ञान है; चारित्र है। तत्वार्थ सूत्र में “सम्यक्लं " है. कि सम्यक्त्व देवायु का कारण नहीं है, कि मोक्षमार्ग में सम्यक् का = रूपी वृक्ष का मूल सम्यग्दर्शन है; उसका उसकी शाखा है । जिस जीव ने निर्दोष सम्यक्त्व रूप आरंम प्रकाश प्राप्त कर लिया है, उसके लिए सर्वांगीण विकास तथा आत्मीक उन्नति का मार्ग खुला हुआ है । लौकिक श्रेष्ठ सुखादि की सामग्री केवल सम्यक्त्री ही पाता है। तीर्थकर की श्रेष्ठ पदवी के लिए बंध करने वाला ate सम्यग्दर्शन समलंकृत होता है । वह सम्यक्त्वी संयम और संयमी को हृदय से अभिवंदना करता हुआ उस ओर प्रवृत्ति करने का सदा प्रयत्न किग्रा करता है । वह अपने असंयमी जीवन पर अभिमान न कर स्वयं की शिथिल प्रवृत्तियों की निन्दा-गर्दा करता है। सच्चे सम्यक्त्वो का आदर्श परमात्म पद की प्राप्ति है, अतः व अपनी यथार्थ स्थिति को समझकर स्त्र-स्तुति के स्थान पर स्वयं की समालोचना करने में तत्पर
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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