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________________ जीव के द्वारा किया गया रागादिभाव बंधक कहा गया है । रागादि से विमुक्त अर्थात् वीतराग भाव प्रबंधक है । वह ज्ञायक भाव कहा गया है । ___सम्यक्त्वी के बंध पर आगम-ज्ञानी के बंध का सर्वथा अभाव मानने की धारणा आगम के प्रतिकूल है, इस बात का स्पष्टीकरम समयसार की इस गाथा द्वारा होता है। उसमें यह कहा गया है कि जब सम्यक्त्वी के ज्ञान गुण का जघन्य रूप से परिसमन होता है, तच बंध होता है। जम्हा दु जहरणादो वाणगुखादो पुणोवि परिणमदि । अएणतं गाणगुणो तेण दु भो बंधगो मणिदो || १७१ ॥ जिस कारण ज्ञानगुस जघन्य ज्ञानगुण से अन्य रूपसे परिगमन करता है. इस कारण वह शानगुस बंधक कहा गया है। जो अविरति युक्त सम्यक्स्वी को सर्वथा प्रबंधक सोधत है, पाकिसदेहायकावासादीकुममृतचंद्र स्वामी कहत है "यथाख्यातचारित्रावस्थाया अधस्तादवश्यंभावि-राग-सद्भावात बंधहेतुभव स्यात्'-यथाख्यात चारित्र रुप अवस्था के नीचे अथात सूक्ष्म माम्पराय गुमस्थान पर्यन्त नियम से राग का अस्तित्व पाया जाता ( है, अतः उस राग से बंध होता है। दसण-णाणे-चरिच जं परिणमदे जहरणभावेण । णाणी तेण दु झदि पुग्गलकम्मेण विविहेण।।१७।।म.सा. __ इस कारस, दर्शन, ज्ञान तथा चारित्र जघन्य भाव से पारगमन हैं। अतएव ज्ञानी नाना प्रकार के पौद्गलिक कर्मों का बंध करता है । 'जघन्यभाव' का अर्थ सकषायभाव है । जयसेनाचार्य कहते हैं, "जघन्यभावेन सकपायभावेन ।" इस प्रकार आगम का कथन देखकर भी कुछ लोग यह कहा करते हैं, सम्यक्त्वी के बंध नहीं होता है। जो बंध है, वह भी कथन मात्र है । यथार्थ में वह बंध रहित है। यह एकान्त पक्ष का समयन विशुद्ध पिसन तथा भागम की देशना के प्रतिकूल है । जब अविरत सम्यक्त्वी के बंध के कारण अविरति, प्रमाद, कषाय तथा योग रूप चार कारण विद्यमान हैं तथा उनके द्वारा चारों प्रकार कर्मबंध होता है,
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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