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समाधान -- ज्ञानावर खादि कर्मों के भागमन का कारण मियादर्शन मिध्यादृष्टि के ही होता है। सासादन सम्यग्दृष्टि के नहीं होता है। अम्रयत के पूर्णतया अविरतिपना है। देशसंयत के एक देश अविरति पाई जाती है, संयत के नहीं पाई जाती है । प्रमाद भी प्रमत्तगुरूस्थान पर्यन्त पाया जाता है, अप्रमत्तादि के नहीं। कषाय सकषाय के ही पायी जाती है । उपशान्त कषायादि के वह नहीं पाई जाती है। योगरूप आत्र योगकेवली पर्यन्त सबके पाया जाता है। अतः उसे भाव कहा है । मिथ्यादर्शनादि का संक्षेप से योग में ही अंतर्भाव हो जाता है (६,२, पृ० ४४३) | द्रव्य संग्रह में कहा है --
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राणा र दीर्गः जोग महाराज दव्यासबोस यो प्रणेयमेभो जिणक्खादो ॥ ३१ ॥ द्र.सं.
ज्ञानावरणादि आठ कर्मरूप परिमन करने योग्य जो पुद्गल आता है, वह द्रव्यास्त्र है। उसके अनेक भेद हैं. ऐसा जिनेन्द्र ने कहा हैं। जीव के जिन भावों के द्वारा कर्मों का स्व होता है, उनको: भावालव कहा है ।
मिन्नाविरदि प्रमाद जोम कोहाद भोऽथ विरोया ।
पण-पण-पादस - सिय- चंदु-कमसो भेदा दु पुञ्चस्स ॥ ३० ॥
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मिध्यात्व अविरति, प्रमाद, योग तथा क्रोधादि कषाय भावाव के भेद हैं, उनके कमश: पांच, पांच, पन्द्रह, तीन और चार भेद कहे है। मिध्यात्व के एकान्त विपरीत, संशय, विनय तथा अज्ञान ये पांच भेद है। पांचों इंद्रिय सम्बन्धी अविरति पांच प्रकार की है । प्रमाद के पंद्रह भेद हैं। योग मन, वचन तथा कार्य के भेद से तीन प्रकार । क्रोध, मान माया और लोभ के भेद से कषाय चार प्रकार है ।
अनगारधर्मामृत में लिखा है, "आम्रये योगो मुख्यो, बच त्रायादि: यथा राजसभायामनुब्राह्म-निमायोः प्रवेशन राजादिष्टपुरुषो मुख्यः, तयोरनुग्रह-निमकरणे राजादेशः (११२ )---.
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आ में बोला को मुख्यता है, बंध में कषायादि की मुख्यदा है । जैसे राजसभा में अनुप्रड़ करने ओम्य तथा निग्रह करने योग्य पुरुषों के प्रवेश कराने में राज्य कर्मचारी मुख्य है, किन्तु प्रवेश होने के पश्चात् उन व्यक्तियों को सत्कृत करना या दण्डित करना इसमें राजा मुख्य है 12