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श्री चंद्रप्रभु
खामगांच जि. बुलडाणा
( २३६ ) सिंगान पाठशाला जो जम्हि संछुहतो णियमा बंधम्हि होइ संलुहणां । बंधेण हीणदरगे अहिए वा संकमो णस्थि ॥६॥
__ मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविद्यिासागर जी महाराज जो जिस बंधनेवाली प्रकृति में संक्रमण करता है, वह नियमसे बंध सदृश ही प्रकृतिमें संक्रमण करता है अथवा बंधकी अपेक्षा हीनतर स्थितियुक्त प्रकृतिमें संक्रमण करता है, किन्तु बंधकी अपेक्षा अधिक स्थितिवाली प्रकृतिमें संक्रमण नहीं होता है । बंधेरण होइ उदयो अहियो उदएण संकमो अहियो । गुणसेढि अणंतगुणा बोद्धव्वा होइ अणुभागे ॥७॥ ___ बंध से उदय अधिक होता है। उदय से संक्रमण अधिक होता है। अनुभाग के विषय में गुणश्रेणि अनंतगुणी जानना चाहिये। बंधेण होई उदयो अहियो उदएण संकमो अहिओ। गुणसेढि असंखेजा च पदेसगेण बोद्धव्वा ॥८॥
बंध से उदय अधिक होता है। उदय से संक्रमण अधिक होता है। इस प्रकार प्रदेशाग्रकी अपेक्षा गुणश्रेणी असंख्यातगुणी जानना चाहिये।
विशेष—किसी प्रकृति के प्रदेशबंध से उसके प्रदेशों का उदय असंख्यात गुणा अधिक होता है। प्रदेशों के उदय को अपेक्षा प्रदेशों का संक्रमण और भी असंख्यात गुणा अधिक होता है । उदयो च अणतगुणो संपहि-बंधेण होइ अणुभागे। से काले उदयादो संपहि-बंधो अवंतगुणो ॥॥
अनुभाग की अपेक्षा सांप्रतिक बंध से सांप्रतिक उदय अनंत. गुणा है। इसके अनंतरकालमें होने वाले उदय से सांप्रतिक बंध अनंतगुपणा है।