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________________ चपणाधिकार चूलिका अण मिच्छ मिस्स सम्मं अट्ठ णसिस्थि-वेद छक्कं च । पुवेदं च खवेदि हु कोहादीए च संजलणे ॥ १॥ । अमांशानुमंत्री: चावधि प्रारम्बाहाशति इन सात प्रकृतियों को क्षपक श्रेणी चढ़ने के पूर्व ही क्षपण करता है। पश्चात् क्षपक श्रेणी चढ़ने के समय में अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में अंतरकरण से पूर्व ही पाठ मध्यम कषायों का क्षपण करता है । इसके अनंतर नपुंसकवेद, स्त्रीवेद, हास्यादि छह नोकषाय तथा पुरुषवेद का क्षय करता है । इसके पश्चात् संज्वलन क्रोधादि का क्षय करता है। । विशेष-धवला टीका के प्रथम खंड में लिखा है, "कसायपाहुड-उवएसो पुण अट्ठकसाएसु खीणेसु पच्छा अंतोमुहत्तं गंतूण सोलस-कम्माणि खविज्जति ति"-कषायपाहुड का उपदेश इस प्रकार है, कि पाठ कषायों के क्षय होने के पश्चात् अन्तर्मुहूर्त व्यतीत होने पर सोलह प्रकृतियों का क्षय होता है ( ध. टी. भा. १, पृ. २१७) सत्कर्मप्राभूत का अभिप्राय इससे भिन्न है । "सोलसपयडीयो खवेदि तदो अंतोमुहत्तं गंतूण पक्चक्खाणापच्चक्खाणावरण-कोध माण-माया-लोभे अकमेण खबेदि एसो "संतकम्मपाहुड-उबएसो"| सोलह प्रकृतियों का पहले क्षय करता है । इनके अनंतर अंतमुहर्तकाल व्यतीत होने पर प्रत्याख्यानावरण, अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया और लोभ को अक्रमरूप से क्षय करता है । (१) १ षोडशानां कर्म प्रकृतीनामनिवृत्तिबादरसांपरायस्थाने युगपत् क्षयः क्रियते । ततः परं तत्रैव कषायाष्टकं नष्टं क्रियते ॥ सर्वार्थसिद्धिः पृ. २३७ अ. १०, सूत्र २
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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