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________________ ( २३२ ) किट्टीदो किट्टि पुण संकमादि खयेण किं पयोगेण । कि सेसगम्हि किट्ठीय संकमो होदि अण्णिस्से ॥२२६॥ । एक कृष्टिसे दूसरी को वेदन करता हुआ क्षपक पूर्व वेदित कृष्टि के शेषांश को क्षय से संक्रमण करता है अथवा प्रयोग द्वारा संक्रमण करता है ? पूर्ववेदित कृष्टि के कितने अंश रहने पर अन्य कृष्टि में संक्रमण होता है ? विशेष- 'एदिस्से बे भासगाहारो'- इसकी दो भाष्य गाथाएँ हैं । किट्ठीदो किहिं पण संकुम रिणयुमसा पओगेगा। किट्ठीए सेसगं पुण दो आवलियासु जं बद्ध ॥२३०॥ एक कृष्टि के वेदित शेष प्रदेशाग्र को अन्य कृष्टि में संक्रमण करता हुआ नियम से प्रयोग द्वारा संक्रमण करता है । दो समय कम दो प्रावलियों में बंधा द्रव्य कृष्टि के वेदित-शेष प्रदेशाग्र प्रमाण है। । विशेष—१ जिस संग्रह कृष्टि को वेदन कर उससे प्रनंतर समय में अन्य संग्रह कृष्टि को प्रवेदन करता है, तब उस पूर्व समय में वेदित संग्रहकृष्टि के जो दो समय कम पावलीबद्ध नवक समयप्रबद्ध हैं, वे तथा उदयावलि में प्रविष्ट प्रदेशाग्र प्रयोग से वर्तमान समय में वेदन की जानेवाली संग्रहकृष्टि में संक्रमित होते हैं। १ जं संगहकिट्टि वेदेदूण तदो सेकाले अण्णं संगहकिट्टि पवेदयदि। तदो तिस्से पुब्बसमयवेदिदाए संगहकिट्टीए जे दो प्रावलियबंधा दुसमयूणा प्रावलिय-पविट्टा च अस्सि समए वेदिज्जमाणिगाए संग्रहकिट्टीए पप्रोगसा संकमंति ( २२५३)
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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