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________________ ( २०० ) विशेष-क्षपक श्रेणी का आरोहण क्रोध कषाय के उदय के साथ होने पर बारह, मान कषाय के साथ होने पर नव, माया कषाय के साथ होने पर छह और लोभ कषाय के साथ होने पर तीन कृष्टियां होती हैं। एक एक संग्रह कृष्टि में अवयव कृष्टियां अनंत होती हैं। "एक्केक्कस्स कसायस्स एक्केविकस्से संगहकिट्टीए अवयवकिट्टीमो अणंतानो अस्थि" ( २०७३ ) मार्गदर्शक एकावर्षायामासानासान कृष्टिया होती हैं । किट्टी करेदि णियमा ओवष्ट तो द्विदी य अणुभागे। बढ्तो किट्टीए अकारगो होदि बोद्धव्यो । १६४ ॥ चारों कषायों की स्थिति और अनुभाग का नियम से अपवर्तन करता हुआ कृष्टियों को करता है। स्थिति तथा अनुभाग को बढ़ाने वाला कृष्टि का अकारक होता है यह जानना चाहिए । विशेष-"जो किट्टीकारगो सो पदेसगं ठिदीहि दा अणुभागेहिं वा प्रोकडुदि ण उपकडदि"-कृष्टि कारक प्रदेशाग्र को स्थिति तथा अनुभाग की अपेक्षा अपवर्तन ( अपकर्षण ) करता है, उद्वर्तन ( उत्कर्षण ) नहीं करता है। __ कृष्टिकारक क्षपक कृष्टि करण के प्रथम समय से लेकर जब तक चरमसमयवर्ती संक्रामक है, तब तक मोहनीय के प्रदेशाग का अपकर्षक ही है, उत्कर्षक नहीं है । उपशामक प्रथम समय कृष्टि कार्य को आदि लेकर जब तक वह चरम समयवर्ती सकषाय रहता है, तब तक अपकर्षक रहता है, उत्कर्षक नहीं। उपशम श्रेणी से गिरने वाला जीव सूक्ष्मसांपरायिक होने के प्रथम समय से लेकर नोचे अपकर्षक भी है, उत्कर्षक भी है। उपशमश्रेपी चढ़नेवाले के कृष्टिकरण के प्रथम समय से लेकर सूक्ष्मसांपरायिकके अन्तिम समय पर्यन्त अपकर्षण करण होता है।
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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