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। १६३ ) बंधोदएहि णियमा अणुभागो होदि णतगुणहीणो । से काले से काले भज्जो पुण संकमो होदि ॥ १४८ ॥
अनुभाग, बंध और उदय की अपेक्षा तदनंतर काल में नियम से अनंतगुणितहाकिहोता हनान्तु सविधिसमजना महाराज
विशेष-अस्सि समए अणुभागबंधो बहुप्रो । से काले प्रणंतगुणहीणो"-वर्तमान समय में अनुभागबंध बहुत होता है । अंतर काल में अनंतगुणीत हीन होता है। "एवं समए समए अणतगुणहीणो"-इस प्रकार समय समय में अनंतगुणित होन होता है । ___ "एवमुदयो वि कायव्वो"-इसके समान अनुभागोदय को जानना चाहिये। वर्तमान क्षण में अनुभागोदय बहुत होता है। तदनंतर कालमें अनंतगुणित होन होता है।
संक्रमण जब तक एक अनुभागकांडक का उत्को रण करता है, सब तक अनुभागसंक्रमण उत्तना उतना ही होता रहता है। अन्य अनुभाग कांडक के प्रारंभ करने पर उत्तरोत्तर क्षणों में वह अनुभाग. संक्रमण अनंतगुणा हीन होता जाता है। गुणसेढि असंखेजा च पदेसम्गेण संकमो उदओ। से काले से काले भज्जो बंधो पदेसग्गे ॥ १४६ ॥
प्रदशाग्र की अपेक्षा संक्रमण और उदय उत्तरोत्तरकाल में असंख्यातगुण श्रेणिरुप होते हैं | बंध प्रदेशाग्रमें भजनीय हैं ।
विशेष--"पदेसुदयो अस्सि समएथोवो। से काले असंखेजगुणो" धर्तमान समय में प्रदेशोदय स्तोक है। तदनंतर कालमें असंख्यातगुणित है। इस प्रकार सर्वत्र जानना चाहिये।
जैसी प्रदेशोदय को प्ररुपणा है, वैसी ही संक्रमण की भी है। "जहा उदयो तहा संकमो वि कायव्वो" । वर्तमान काल में प्रदेशों का संक्रमण अल्प है। तदनंत रकाल में वह असंख्यातगुणित है ।