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________________ f ( १८७ ) छह नोकषाय इनका संक्रमण प्रस्थापक नियमसे प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशरुप सर्व अंशों में प्रवेदक रहता है । 1 विशेष --- (१) निद्रा शब्द निद्रानिद्रा का सूचक है । प्रचला से प्रचलाप्रचला जानना चाहिये । 'च' शब्द स्त्यानगृद्धि का बोधक हैं । 'अगि' शब्द यशः कीर्ति का बोधक है । इस पद को उपलक्षण मानकर वेद्यमान सभी प्रशस्त, अप्रशस्त प्रकृतियों का ग्रहण करना चाहिए, कारण मनुव्यगति, पंचेन्द्रिय जाति प्रादितीम प्रकृतियों को छोड़कर शेष का यहां उदय नहीं पाया जाता है । वेदे च वेदणीए सव्वावरणे तहा कसाए च । भयदितो मग समोर होदि १३५ ॥ वह संक्रमण प्रस्थापक वेदों को, वेदनीय कर्म को, सर्वघाती प्रकृतियों को तथा कषायों को वेदन करता हुआ भजनीय है । उनके अतिरिक्त शेष का वेदन करता हुआ भजनीय है । विशेष - तीनों वेदों में से एक वेद का वेदन करता है । "पुरिस वेदादी मण्णद रोवयेण सेहिसमारोहणे विरोहाभावादी”. पुरुषवेदादि में से किसी वेद से श्रेणी समारोहण का विरोध नहीं है । यहां वेद का संबंध भाववेद से है । द्रव्यतः पुरुषवेदो ही श्रेणी पर आरोहण करता है । - साला, साता वेदनीय में से अन्यतर का वेदन करता है । ग्राभिनिबोधिक ज्ञानावरणीय आदि सर्व आवरणीय कर्मों के सर्वघाती अथवा देशघाती अनुभाग का वेदन करता है । चारों कषायों में से किसी एक कषाय का वेदन करता 1 १ 'णिद्दा च' एवं भणिदे णिहाणिदाए गहणं कायां । 'च' सद्दण श्री गिद्धीए वि गहणं कायव्वं । 'पयला' शिद्द सेण वि पयलापयलाए संगहो ददुव्वो ।
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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