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________________ ( १७६ ) संख्यात सहस्र स्थितिकांडकों के बीतने पर प्राठ मध्यम कषायों का संक्रामक अर्थात क्षपणा का प्रारम्भ होता है । तत्पश्चात् स्थिति कांडक पृथक्त्व से प्राठ कवाय संक्रान्त की जाती हैं। उसके अंतिम स्थितिकांडक के उत्कीर्ण होने पर उनका स्थिति सत्व श्रावली प्रविष्ट शेप अर्थात् उदयावली प्रमाण है। स्थिति कांडक पृथक्व के अनंतर निद्रा-निद्रा, प्रचलाप्रचला, स्त्यानगृद्धि, नरकद्वितियंग्गतिद्विक, एकेन्द्रियादि चार जाति, प्रातप, उद्योत, स्थावर, सूक्ष्म, साचारण के स्थितिसत्व का संक्रामक होता है। पुनः स्थितिकांडक पृथक्त्व से पश्चिम स्थितिकांडक के उत्कीर्ण होने पर पूर्वोक्त सोलह प्रकृतियों का रहता है। मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुवासहित लोहार विष्ट शेत 1 इसके बाद स्थितिकांडक पृथक्त्व के द्वारा मन:पर्ययज्ञानावरण और दानान्तराय का अनुभाग बंध की अपेक्षा देशघाती हो जाता है । पुनः स्थितिकांडक पृथक्त्व के द्वारा अवधिज्ञानावरणीय, श्रवधिदर्शनावरणीय और लाभान्तराय का अनुभागबंध को अपेक्षा देशघाती हो जाता है । पुनः स्थिति काण्डक पृथक्त्व के द्वारा श्रुतज्ञानावरणीय, प्रचक्षुदर्शनावरणीय और भोगान्नराय कर्म का अनुभाग बंध की अपेक्षा देशघाती हो जाता है । पुनः स्थितिकांडक पृथक्त्व के द्वारा चक्षुदर्शनावरण का अनुभाग बंध की अपेक्षा देशघाती हो जाता है । पुनः स्थितिकांडक पृथक्त्व से द्वारा ग्राभि निबधिक ज्ञानावरणीय तथा परिभोगान्तराय का अनुभाग बंध की अपेक्षा देशघाती हो जाता है। पुनः स्थितिकांडक पृथक्त्व के द्वारा वीर्यान्तराय का अनुभाग बंब की अपेक्षा देशघाती हो जाता है । इसके बाद सहस्रों स्थितिकांकों के बांतने पर अन्य स्थिति कांडक, ग्रन्य अनुभाग काण्डक, अन्य स्थितिबंध और उत्कीरण करने के लिए अन्तर स्थितियां इन चारों कारणों को एक साथ प्रारम्भ करता है। चार संज्वलन तथा नवनरेकषायों का अन्तर करता है । शेष कर्मों का अंतर नहीं होता है । पुरुषवेद और सज्वलन की अन्तर्मुहूर्त प्रमाण प्रथम स्थिति को छोड़कर अन्तर करता है ।
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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