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________________ ( उत्कर्षणाकरण ) होता है। शेष सात करण नहीं होते हैं। "पाउगस्स प्रोवट्टणाकरणमत्थि सेसाणि सत्तकरणाणि पत्थि" विकासोगेर बंगहासमवर्तना, उद्वर्तना और संक्रमण ये चार करण होते हैं। "सेमाणि चत्तारि करणाणि त्थि"—शेष चार करण नहीं होते हैं। मूलप्रकृतियों की अपेक्षा यह क्रम बादरसापराय गुणस्थान के अंतिम समय पर्यन्त जानना चाहिये । सूक्ष्मसापराय में मोहनीय के अपवर्तना और उदीरणाकरण ही होते हैं। उपशांतकषाय वीतराग के दर्शनमोह अपवर्तना तथा संक्रमणकरण होते हैं। वहां शेष कर्मों के उद्वर्तना और उदीरणाकरण होते हैं। आयु और वेदनीय का अपवर्तना करण ही होता है । "के करणं उवसंत" आदि गाथा की विभाषा करते हैं । प्रश्न-कौन कर्म कितने काल पर्यन्त उपशांत रहता है ? समाधान—निर्व्याघात काल ( मरणादि व्याघात रहित अवस्था ) की अपेक्षा नपुन्सकवेदादि मोह को प्रकृतियां अंतर्महर्त पर्यन्त उपशान्त रहती हैं। प्रश्न-कौन कर्म कितने काल पर्यन्त अनुपशान्त रहता है ? ममाधान-अप्रशस्तोपशामना के द्वारा निर्व्याघात को अपेक्षा कर्म अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त अनुपशान्त रहते हैं, किन्तु व्याघात अर्थात् मरण की अपेक्षा एक समय तक ही अनुपशांत रहते हैं । शंका--उपशान्त मोह जोब किस कारण से नीचे गिरता है ? समाधान-उपशांत कषाय से गिरने का कारण उपशमनकाल का क्षय है। उससे वह सूक्ष्मलोभ में गिरता है। "प्रद्धाक्खएण सो लोभे पडिवदिदो होइ" (१८९२)
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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