SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 245
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १६९ ) विसंयोजन करके तत्पश्चात् उपशमश्रेणी में समारोहण देखा जाता है। इससे विसंयोजन रुप अमलापुत्रंथों में शामिनी सनिवामही ही महाराज अप्रत्याख्यानावरण आदि द्वादश कषाय तथा नव नोकषायवेदनीय इन इक्कीस प्रकृतियों का उपशम होता है। उपशम श्रेणी में इन इक्कीस प्रकृतियों का उपशम होता है। 'बारसकसायणवणोकसायवेदणोयामुवसामो"। प्रश्न-"के कम्म उबसंतं अणुवसंतं च के कम्म" ? कोन कर्म उपशान्त रहता है ? कौन कर्म अनुपशान्त रहता है ? उत्तर- इस गाथा ११६ के प्रश्न के समाधान में चूणिसूत्रकार कहते हैं,-"पुरिसवेदेण उवट्ठिदस्स पढम ताच णqसयवेदो उवसमेदि सेसाणि कम्माणि अणुवसमाणि--पुरुषवेद के उदय के साथ उपशम श्रेणी पर आरोहण · करने वाले जीव के सर्वप्रथम नपुंसकवेद का उपशम होता है । शेष कर्म अनुपशान्त रहते हैं । नपुंसकवेद के उपशम होने के अन्तर्मुहूर्त पश्चात् स्त्रीवेद का उपशम होता है !-"सदो सत्तणोकसाया उबसामेदि"-इसके अनंतर सात नोकषायों का उपशम होता है । इसके पश्चात् तीन प्रकार का क्रोध उपशम को प्राप्त होता है । तत्पश्चात् त्रिविधि मान उपशम को प्राप्त होता है । इसके पश्चात् त्रिविधि माया उपशम को प्राप्त होतो है । "तदो तिविहो लोहो उबसदि किट्टीवज्जो' इसके पश्चात् कृष्टियों को छोड़कर तीन प्रकार का लोभ उपशम को प्राप्त होता है । "तदो सव्वं मोहणीयं उवसंतं भवदि"- इसके पश्चात संपूर्ण मोहनीय उपशान्त होता है। शंका-गाथा सूत्र में प्रश्न किया है; "कदिभागुवसामिजदि संकमणमुदोरणा च कदिभागो"-चारित्र मोह का कितना भाग उपशम होता है ? कितना भाग सक्रमण और उदीरणा करता है ? समाधान-जो कर्म उपशम को प्राप्त कराया जाता है, वह अन्तर्मुहूर्त के द्वारा उपशान्त किया जाता है । उस कर्म का जो
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy