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________________ ( १६२ ) प्रतिबद्ध हैं । इसके आगे की चार गाथाएँ प्रतिपात प्रतिपादना से प्रतिबद्ध है ( १८०९ ) पहिलाको चकद्विविधो बुद्धि कति होड़ पडिवदिदो । केसिं कम्मंसाणं पडिवदिदो बंधगो होइ ॥ १२० ॥ प्रतिपात कितने प्रकार का है तथा वह प्रतिपात किस कषाय में होता है ? वह प्रतिपात होते हुए भी किन किन कर्माशों का बंधक होता है ? दुविहो खलु पडिवादो भवक्खया- दुवसमक्खयादो दु । सुहुमे च संपराए बादररागे च बोद्धव्या ॥१२१॥ प्रतिपात दो प्रकार का है । एक प्रतिपात भवक्षय से होता है तथा दूसरा उपशमकाल के क्षय से होता है । वह प्रतिपास सूक्ष्मसांपराय तथा बादर राग ( लोभ ) नामक गुणस्थान में जानना चाहिये । । उवसामणाखयेण दु पडिवदिदो होइ सुहुमरागम्हि । बादररागे खियमा भवक्खया होई परिवदिदो ||१२२|| उपशामना काल के क्षय होने पर सूक्ष्म साम्पराय गुणस्थान में प्रतिपात होता है । भवक्षय से होने वाला प्रतिपात नियम से बादरराग में होता है । उत्रसामणा-खएख दु से बंधदि जहागुपुत्रीए । एमेव य वेदयदे जहागुपुव्वीय कम्मंसे ॥ १२३ ॥ उपशामना काल के समाप्त होने पर गिरने वाला जीव यथानुपूर्वी से कर्मों को बांधता है । इसी प्रकार वह आनुपूर्वी क्रमसे कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है ।
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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