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________________ ( १६० ) कर्मभूमिज के जघन्य संयम स्थान से संयम प्रकर्मभूमिज मनुष्य का उत्कृष्ट संयम स्थान इन वाले कर्मभूमि का उत्कृष्ट संयम स्थान अनंतगुणित है। इससे परिहारविशुद्धि सयतका जघन्य संयम स्थान अनंत-गुणित है। उसका उत्कृष्ट संयम स्थान अनतगुणित है। इससे सामायिक और छेदोपस्थापना संयमियों का उत्कृष्ट संयम स्थान अनंतगुणित है। इससे सूक्ष्मसापराय शुद्धि संयतों का जघन्य संगमस्थान अनंतगुणित है । इससे उसका ही उत्कृष्ट संयमस्थान अनंतगुणित हैं । वीतराग का अजघन्य और अनुत्कृष्ट चारित्रलब्धिस्थान अनंतगुणित है । "श्रीय रायस्स जहण्णमणुक्कस्तयं चरित्तलद्भिद्वाणमणंत-गुणं” ( पृष्ठ १८०६ ) । यहां वीतराग शब्द द्वारा उपशान्त कषाय, क्षीणकषाय तथा केवली का ग्रहण विवक्षित है । कषाय का अभाव हो जाने से उपशान्तकषाय, क्षीणकषाय तथा केवली अवस्था में पाए जाने वाले यथाख्यातविहारशुद्धि संयतों में जघन्य तथा उत्कृष्ट भेद की अनुपलब्धि है | संयम को प्राप्त को प्राप्त होने वाले मतगुणित है।
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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