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________________ ( १४१ ) सम्मत्तपढमलभो सव्वोवसमेण तह वियट्ठरेण । भजिव् य अभिक्रखं सव्वोवसमेण देसेण ॥ १०४ ॥ नादि मिथ्यादृष्टि जीव को सम्यक्त्व की प्रथम बार प्राप्ति सर्वोपशम से होती हैं । विप्रकृष्ट सादि मिथ्यादृष्टि भी सर्वोपशम से प्रथमोपशम सम्यक्त्व को प्राप्त करता है । विप्रकृष्ट सादि मिथ्यादृष्टि, जो अभीक्ष्णश्रर्थात् बार बार सम्यक्त्व को प्राप्त करता है, सर्वोपशम तथा देशोपशम से भजनीय है । विशेष - जिस जीव ने एक बार भी सम्यक्त्व को प्राप्त कर पश्चात् मिथ्यात्व अवस्था प्राप्त की है, उसको सादि मिथ्यादृष्टि कहते हैं । उसके विप्रकृष्ट तथा अविप्रकृष्ट ये दो भेद कहे गए हैं । शैल से गिरकर मिध्यात्व भूमि को प्राप्त हो गया है तथा जिसने सम्यग्मिथ्यात्व तथा सम्यक्त्व प्रकृति की उद्वेलना को है और जो पल्योपम के प्रसंख्यातवें भाग काल पर्यन्त प्रथवा इससे भी अधिक देशोन अर्धपुदगल परिवर्तन काल पर्यन्त संसार में परिभ्रमण करता है, उसे विप्रकृष्ट सादि मिध्यादृष्टि कहते हैं । मार्गदर्शक :- आचार्य जो जीव सम्यक्त्व से गिरकर मिथ्यात्वी हो पल्योपम के श्रसंख्यातवें भाग के भीतर ही सम्यक्त्व ग्रहण के अभिमुख होते हैं, उन्हें अविप्रकृष्ट सादि मिथ्यात्वी कहते हैं । विप्रकृष्ट सादि मिथ्यादृष्टि नियम से सर्वोपशम पूर्वक हो प्रथमोपशम सम्यक्त्व का लाभ करता है । श्रविप्रकृष्ट सादि मिथ्यादृष्टि सर्वोपशम से तथा देशोपशम से भी प्रथमोपशम सम्यक्त्व को प्राप्त होता है । जो सम्यक्त्व से च्युत होकर अल्पकाल के अनंतर वेदक प्रायोग्यकाल के भीतर हो सम्यक्त्व ग्रहण के श्रभिमुख है, वह देशोपशम के द्वारा सम्यक्त्व को प्राप्त करता है, अन्यथा सर्वोपशम से सम्यक्त्व को प्राप्त करता है ।
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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