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सकल संयम का घातक है। देशसंयम का इससे घात नहीं
होता है। माजी अधुमास के पश्चात समाज पहाजोध का वेदन करता
है, वह पृथ्वी राजि समान क्रोध का घेदन करता है । इस क्रोध के कारण संयमासंयम भी नहीं हो पाता।
- जो क्रोध संख्यात, असंख्यात प्रथवा अनंतभवों में भी उपशान्ति को नहीं प्राप्त होता है, वह पर्वतराज समान क्रोध का वेदन करता है । इस कषाय के कारण सम्यक्त्व को भी ग्रहण नहीं कर सकता है। यह काल कथन कषायों की वासना या संस्कार का है।
- इसीप्रकार का कथन मान, माया तथा लोभ कषाय के विषय में भी जानना चाहिये । 'एदाणुमाणियं सेसाणंपि कसायाणं कायव्वं'-इसप्रकार अनुमान का आश्रय लेकर शेष कषायों के स्थानों का भी दृष्टान्तपूर्वक अर्थ का जानना चाहिये ।
कोहो सल्लीभूदो होदूण हियये ट्ठिदो। पुणो संखेज्जासंखेज्जापांतेहिं भवहिं तं चेब जीवं दट्टण कोथं गच्छइ, सज्जणिदसंसकारस्सणिकाचिदभावेण तराियमेत्तकालावट्टाणे विरोहाभावादो । (१६८८)