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________________ ( १०७ ) विशेष - दीर्घकाल तक रहने वाला क्रोध पर्वत की रेखा मान कहा गया है । उसकी अपेक्षा अल्पकाल स्थायी क्रोध पृथ्वी की रेखा सदृश होता है । बालुका की रेखा सदृश क्रोध उससे भी अल्पकाल पर्यन्त रहता हैं तथा जल की रेखा समान को अल्प समय पर्यन्त रहता है । जो मान दीर्घ समय पर्यन्त रहता है वह शैलधन या शिला स्तंभ के समान है । जो उसकी अपेक्षा कम कठोरतापूर्ण रहता है, वह अस्थि समान है | जो उससे भी विशेष कोमलता युक्त मान है, वह दारुक समान हैं तथा जो मान लता के समान मृदुता युक्त हो तथा जो शीघ्र दूर हो जाय, उसको लता सदश भान कहा है । ET अण्डुमा सरिसका विसारा सरिस्सी य गोमुत्ती । अवलेही समाया माया वि चउव्विहा भणिदा ॥ ७२ ॥ बांस की जड़ समान, मेढे के सींग समान, गोमूत्र के समान तथा श्रवलेखन श्रर्थात् दातौन या जीभी के समान माया चार प्रकार की है । विशेष – प्रत्यंत भयंकर कुटिलतापूर्ण माया बांस की जड़ के समान हैं। उससे भी न्यून वक्रता या माया गोमूत्र समान है। उससे भी कम कुटिलता युक्त माया दातौन ममान है। ? किमिरायरत्तसमगो अक्खमलसमोय पंसुलेवसमो । हालिद्दवत्थसमगो लोभो विचउव्वि हो भणिदो ॥ ७३ ॥ " कृमिराग के समान, अक्षमल अर्थात् गाड़ी के प्रोगन के समान, पांशुलेप अर्थात् धूली के लेप समान तथा हारिद्र प्रर्थात् हल्दी से रंगे वस्त्र के समान लोभ चार प्रकार का कहा गया है । २ १ वेणुवमूलोमयसिंगे गोमुत्तए य खोरप्पे । सरिसी माया णारय- तिरिय णरामर गईसु खियदि जियं ॥ २८६ ॥ २ किमि राय चक्क तमल-हारिद्दराएण संरिम्रो लोहो । यतिरिक्ख माणुस देवेसुप्पायनो कमसो ॥ २८७॥ गो. जी.
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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