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( ८६ ). '. मान कषायका जवन्यकाल सबसे, अल्प है। क्रोध. कषायका जधन्यकाल इससे विशेष अधिक है। माया कषायका जघन्यकाल क्रोध कषाय के जघन्यकालसे विशेषाधिक है। लोभ कपायका जघन्य काल माया कषाय के जघन्य काल से विशेषाधिक है ।
मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज ४ मान कषाय का उत्कृष्ट काल लोभ कषाय के जघन्यकाल से संख्यातगुणा है। क्रोध का उत्कृष्टकाल मानके उत्कृष्ट कालसे विशेषाधिक है। माया का उत्कृष्ट काल. क्रोध के उत्कृष्ट कालसे विशेषाधिक है | लोभकषाय का उत्कृष्टकाल मायाके उत्कृष्टकाल से विशेषाधिक है।
चूणिसूत्र में कहा है, "पबाइज्जतेण उवदेसेण अद्धार्ण बिसेसो अंतोमुहुत्त" (१६१७)-प्रवाह्यमान उपदेश के अनुसार प्राबलीके असंख्यातवें भाग मात्र ही विशेषाधिक काल जानना चाहिए ।
प्रश्न-"को वुण पवाइज्जतोवएसो णाम बुन भेदं ?"प्रवाह्यमान उपदेश का क्या अभिप्राय है ? . जो उपदेश सर्व प्राचार्य सम्मत है, चिरकाल से अविच्छिन्न संप्रदाय द्वारा प्रवाहरुपसे चला आ रहा है, और जो शिष्यपरंपरा के द्वारा प्रतिपादित किया जा रहा है, वह प्रवाह्यमान उपदेश है।
... चारों गतियों की अपेक्षा से कषायों के जघन्य तथा उत्कृष्ट काल. के विषय में यह देखना अवधारण करने योग्य हैं :
... नरकगति में लोभ कषायका जघन्यकाल सर्व स्तोक है। देवगति में क्रोध का जघन्य काल उससे अर्थात् नरकगति के जघन्य लोभ काल · से विशेषाधिक है। देवगति में मानका जघन्य काल देवगति के जघन्य क्रोध काल से संख्यातगुणित है। नरकगति में माया का जघन्यकाम देवगति में मान के जघन्य काल से