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________________ मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज गुणसंक्रमण-अपूर्वकरणादि परिणाम विशेषों का निमित्त पाकर प्रति समय जो प्रदेशका असंख्यातगुणश्रेणी रूप से संक्रमण होता है, उसे गुणसंक्रमपा कहते हैं । __सर्वसंक्रमण ---विवक्षित कर्म प्रकृति के सभी कर्मप्रदेशों का जो एक साथ पर प्रकृनि रुप में संक्रमण होता है, उसे सर्व संक्रमण कहते हैं। यह सर्व संक्रमण उद्वेलन, विसंयोजन, और क्षपणकाल में चरमस्थिति खण्ड के चरमसमयवर्ती प्रदेशों का ही होता है, अन्य का नहीं होता है । " वेदक महाधिकार " कदि आवलियं पवेसेइ कदि च पविस्संतिकस्सावलियं। खेत-भव-काल-पोग्गल-द्विदि-विवागोदय-खयो दु॥५६॥ प्रयोग विशेष के द्वारा कितनो कर्म प्रकृतियों को उदयावली में प्रवेश करता है ? किस जीव के कितनी कम प्रकृतियों को उदोरणा के बिना ही स्थिति क्षय से उदयावली में प्रवेश करता है । क्षेत्र, भव, काल और पुद्गल द्रव्य का प्राश्रय लेकर जो स्थिति विपाक होता है, उसे उदीरणा कहते हैं। उदयक्षय को उदय कहते हैं । विशेष- वेदगेत्ति अणियोगद्दारे दोणि अणियोगद्दाराणि-तं जहा उदयो च उदीरणाच' घेदक अनुयोग द्वार में दो अनुयोगद्वार होते हैं, एक उदय तथा दूसरा उदीरणा है । . तत्थ उदयोणाम कम्माणं जहाकाल जणिदो फलविवागो कम्मोदयो उदयो त्ति भणिदं होइ'-कर्मों का यथाकाल में उत्पन्न फल-विपाक. उदय है। उस कर्मोदय को उदय कहते हैं । "उदीरणा पुण अपरिपत्तकालाणं चेव कम्माणमुवाविसेसेण परिपाचनं
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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