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________________ महत्व व्यक्त करते हुए कहते हैं, "तेण सोवण-भोयण-पयास-पच्चापस सस्थपारंभादिकिरियासु सियमेण अरहवएमोक्कारो कायवो"(पृमीदक्धि:-) अमावासी विकासपणेदनमाप्रज्ञाशाजप्रत्यावर्तन (वापिस 'आना) तथा शास्त्र के प्रारंभ आदि क्रियाओं में नियम से (खियमेण) श्ररइत नमस्कार अर्थात् स्मो अरिहंता रूप महा मंत्र का स्मरण करना चाहिये । मूलाचार में कुंदकुंद स्वामी ने लिखा है :अरहत-गणमोकारं भावेण या जो फरेदि पयदमदी । सो सम्बदुक्खमोक्खं पाया अचिरेण कालेण ॥ ७-५॥ ____ जो निर्मल बुद्धि मानव भावपूर्वक श्ररईत को नमस्कार करता है, वह शीघ्र ही सर्व दुःखों से मुक्त हो जाता है। वास्तव में यह महामंत्र द्वादशांग वारसी का सार है, जो श्रावक, मुनियो तथा अन्य जीवों का कल्याण करता है। इसके द्वारा पापों का क्षय होने से दुःखों का भी नाश होता है। पापों के विपाकवश ही जीव दुःख प्राप्त करते है। इसके द्वारा पुण्य का वध होता है, उससे मनोवांछित सुखदायक सामग्री प्राप्त होती है। यह पंच परमेष्ट्री का स्मरण रूप मंगल संपूर्ण मंगलों में श्रेष्ठ है । कहा भी है : एमो पंच णमोयारो सन्धपाव-पणासणी । मंगलाणं च सध्धेसि पटमं होइ मंगलं ॥ यह पंच नमस्कार मंत्र संपूर्ण पापों का क्षय करने वाला है। ग्रह संपूर्ण मगलों में सर्वोपरि है। श्रमणों के जीवन में इस मंत्र का. प्रतिक्रमणादि आवश्यक क्रियाओं के करते समय, अत्यन्त महत्वपूस स्थान है। महत्त्व की बात-पंच परमेष्टियों में अष्ट कर्मों का क्षय करने वाले सिद्ध भगवान सर्व श्रेष्ठ हैं, फिर भी महामंत्र में पार घानिया फों का दय करने वाले भरहंत को प्रसाम के पश्चात् सिद्धों को प्रसाम किया गया है। इसका कारण यह है, कि व्यवहार नय की अपेक्षा अपनी दिव्यध्वनि के द्वारा अगगित जीवों को कल्याण पथ में प्रवृत्त कराने वाले भरहंत प्रथम पूजनीय माने गए हैं। यहां निश्चय नय की अपेक्षा न करके व्यवहार की उपयोगिता को लक्ष्य में ले बहुजीव-मनुग्रहार्थ
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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