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________________ संक्रम (१२) एक जीवको अपेक्षा स्वामित्व (१३) काल (१४) अन्तर (१५) नाना जीवों की अपेक्षा भंगविचय (१६) भागाभाग (१७) परिमाण (१८) क्षेत्र (१९) स्पर्शन (२०) काल (२१) अन्तर (२२) सन्निकर्ष (२३) भाव (२४) अल्पबहुत्व । मिथ्यात्व प्रकृति का संक्रमण करने वाला सम्यग्दृष्टि है। संक्रमण के योग्य मिथ्यात्व की सत्तावाले सभी वेदक सम्यक्त्वी मिथ्यात्व का संक्रमण करते हैं। प्रासादना निरासान सभी उपशम सम्यक्त्वो मिथ्यात्व का संक्रमण करते हैं । सम्यक्त्व प्रकृति का संक्रमण उसको सत्तायुक्त मिथ्याष्टि जीव कारचायत्री हिविवशष है कि जिसके एक प्रावलीकालप्रमाण हो सम्यक्त्वप्रकृति को सत्ता शेष रही हो, वह मिथ्यात्वी इस प्रकृति का संक्रमण नहीं करता है।। - -:- :-% 3 D पहाराज सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति का संक्रमण सम्यग्मिथ्यात्व की उद्वेलना करने वाला मिथ्यादृष्टि करता है। - आसादना रहित उपशम सम्यक्त्वी भी इस प्रकृति का संक्रामक होता है ! .. प्रथम समय में सम्यग्मिथ्यात्व की सत्तावाले जीव को छोड़कर सर्व वेदक सम्यक्त्वी भी सम्यग्मिथ्यात्व के संक्रामक होते है। यह भी स्मरण योग्य है कि "दसणमोहणीयं चारित्तमोहणीए ण संकमइ । चारित्तमोहणीयं पि दसणमोहणीए ण संकमई"दर्शनमोहनीय का चरित्र मोहनीय में संक्रमण नहीं होता है । चारित्रमोहनीय भी दर्शनमोहनीय में संक्रम नहीं होता है। 'एवं सब्यायो चारित्तमोहणीय-पयडीमो'- यह बात सभी चारित्र मोह की प्रकृतियों में है। 'तानो पणुवीसं पि चरितमोहणीयपयडीयो अण्णदरस्स संकमंति"-वे पच्चीस चारित्र मोह की प्रकृतियां किसी भी एक प्रकृति में संक्रमण करती हैं। (पृष्ठ ९६७-६८)
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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