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( ३३ ) अनुयोगद्वारों से कथन किया गया है । एक कम में सन्निकर्ष रूप मामिसंभजाचोने प्रासेसिमलापहिला नहीं किया गया हैं । 'सष्णियासो णस्थि, एकस्से पयडीए तदसंभवादो।" सन्निकर्ष को छोड़कर ये तेईस अधिकार कहे गये हैं। (१) संज्ञा (२) सर्वानुभागविभक्ति ( ३ ) नोसर्वानुभागविभक्ति ( ४ ) उत्कृष्ट अनुभागविभक्ति ( ५ ) अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्ति (६) जघन्य अनुभाविभक्ति (७) अजघन्य अनुभागविभक्ति (८) सादि अनुभागविभक्ति ( ९ ) अनादि अनुभागविभक्ति (१०) ध्रुव अनुभागविभक्ति (११) अध्रुव अनुभागविभक्ति (१२) एकजीवको अपेक्षा स्वामित्व (१३) काल (१४) अंतर (१५) नाना जीवों को अपेक्षा भंगविचय (१६) भागाभाग (१७) परिमाण (१८) क्षेत्र (१९) स्पर्शन ( २० ) काल ( २१ ) अंतर (२२) भाव (२३) अल्पबहुत्व । यहां भुजगार, पदनिक्षेप, वृद्धिविभक्ति और स्थान ये चार अर्थाधिकार भी होते हैं।
प्रथम अधिकार संज्ञा के (१) घाति (२) स्थान ये दो भेद हैं। मोहनीय जीव के गुण का घात करता है। उसके देशघाती और सर्वघाती भेद किये गए हैं।
१ मोहनीय का उत्कृष्ट अनुभाग सर्वघाती है तथा उसका जघन्य अनुभाग देशघाती है । मोहनीय का अनुकृष्ट और अजघन्य अनुभाग सर्वघाती है तथा देशघाती भी है ।
__ मोहनीय का भेद संस्थान संज्ञा है। उसके जघन्य और उत्कृष्ट ये दो भेद हैं।
१ मोहणीयस्स उक्कस्स अणुभागविहत्ती सव्वषादी [ अणुक्कस्स अणुभागविहत्ती सव्वघादी देसघादी वा । जहण्णाणुभागविहत्ती देसघादी, अजहण्णाणुभाग-विहत्ती देसघादी सव्यपादो का (५१९)