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१ प्रकृति स्वभाव का पर्यायवाची है । ज्ञानावरणादि कर्मों का जो स्वभाव है, वही उनको प्रकृति है । ज्ञानावरणादि कर्मों के उदयवश जो पदार्थों का अवबोध न होना आदि स्वभाव का क्षय न होना स्थिति है। कर्म पुदगलों को स्वगत सामर्थ्य विशेष अनुभव है। कमरूप परिणत पुदगल स्कन्धों के परमाणुरों की परिगणना प्रदेश बंध है।
मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज
ठिदि त्रिहती
यह स्थिति विभक्ति (१) मूलप्रकृति-स्थिति-विभक्ति (२) उत्तरप्रकृति-स्थितिविभक्ति के भेद से दो प्रकार की है। एक समय में बद्ध समस्त मोहनीय के कर्मस्कन्ध के समूह को मूल प्रकृति कहते हैं। कर्मबन्ध होने के पश्चात् उसके प्रात्मा के साथ बने रहने के काल को स्थिति कहते हैं।
____ मोहनीय कर्म को पृथक पृथक् अट्ठाईस प्रकृतियों की स्थिति को उत्तर प्रकृति-स्थितिविभक्ति कहते हैं।
१. प्रकृतिः स्वभावः । ज्ञानावरणादीनामर्थानयगमादि-स्वमावादप्रच्युतिः स्थितिः । तद्रसविशेषो अनुभवः । कर्मपुद्रगलानां स्वगतसामथ्यंविशेषोनुभवः। कर्मभावपरिणतपुदगलस्कन्धानां परमा. गुपरिच्छेदेन अवधारणं प्रदेशः । (सर्वार्थसिद्धि अध्याय, ८ सूत्र ३)
१ एगसमम्मि बद्धासेस-मोहकम्मक्खंधाणं पयहिसमूहो मूलपयडी णाम । तिस्से द्विदी मूलपयडिदिदी । पुधपुध अट्ठावीसमोहपयडीणं द्विदीयो उत्तरपडिट्ठिदी णाम ।