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________________ ( २६ ) पयडि विहत्ती द्रम .::...: पाठशाला खामगाव जि. बुलडाणा पयडीए मोहणिज्जा विहत्ती तह दिदीए अणुभागे। उकासमणुक्कस्सं झीणमझीणं च टिदियं वा ॥ २२ मोजोमको अवचि विक्षुविधासमिति महतसाति, अनुभाग विभक्ति, उत्कृष्ट-अनुत्कृष्ट प्रदेश विभक्ति, क्षीणाक्षीण तथा स्थित्यंतिक का प्रतिपादन करना चाहिये। विशेष --विभक्ति, भेद, पृथकभाव ये एकार्थवाची है। “विहसी भेदो पुधभावो त्ति एयद्यो” । यतिवृषभ प्राचार्य की दृष्टि से इस गाथा के द्वारा प्रकृति विभक्ति आदि छह अधिकार सूचित किए गए हैं। प्रकृति विभक्ति के मूल प्रकृति विभक्ति और उचर प्रकृति विभक्ति ये दो भेद किए गये हैं। मूल प्रकृति विभक्ति को प्ररुपणा इन पाठ अनुयोगद्वारों से की गई है--एक जीव की अपेक्षा स्वामित्व, काल, अन्तर, नाना जीवों को अपेक्षा भंगविचय, काल, अन्तर, भागाभाग और अल्पबहुत्व ये आठ अनुयोग द्वार हैं । उत्तर प्रकृति विभक्ति दो प्रकार की है--(१) एकैक उत्तरप्रकृति विभक्ति (२) प्रकृति स्थान उत्तर प्रकृति विभक्ति । एकैक उत्तरप्रकृति विभक्ति के अनुयोग द्वार इस प्रकार कहे गए हैं । एक जीव की अपेक्षा स्वामित्व, काल, अन्तर, नाना जीवों की अपेक्षा भंगविचयानुगम, परिमाण, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, सन्निकर्ष और अल्पबहुत्व ये एकादश अनुयोग द्वार हैं। प्रकृति स्थान विभक्ति में ये अनुयोग द्वार हैं--एक जीव की अपेक्षा स्वामित्व, काल, अन्तर, नाना जीवों की अपेक्षा भंगविचय, परिमाण, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, अल्पबहुत्व, भुजाकार, पदनिक्षेप और वृद्धि ये त्रयोदश अनुयोग द्वार हैं।
SR No.090249
Book TitleKashaypahud Sutra
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size7 MB
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