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________________ १२. धर्मानुमेक्षा कलनवस्त्राभरणादयः तेषां हरणे चौर्यकर्मणि ग्रहणे अदत्तादाने शील म्खभात्रो यस्य स तथोकः । इति खेयानन्दः । तथा "यचौर्याय शरीरिणामहरहश्चिन्ता समुत्पद्यते, कृत्वा चौर्यमपि प्रमोदमतुलं कुर्वन्ति यसततम् । चौर्येणापड़ते परैः परधने यजायते संभ्रमस्तचौर्यप्रभव बदन्ति निपुणा रौद मुनिन्दास्पदम् ।।" "द्विपदचतुष्पदसारे धनधान्यवराङ्गनासमाकीर्गम् । वस्तु परकीयमपि मे खाधीन चौर्यसामर्थ्यात् ।।" "इत्थं चुराया विविध प्रकारः शरीरिभिर्यः फियतेऽमिलापः । अपारदुःखार्णवाहेतुभूत रौद्र तृतीयं तदिह प्रणीतम् ।।" इति तृतीय चौर्यानन्दच्यानम् ३ । खकीयविषयसुरक्षणे दक्षा स्वकीययुवतीद्विपदचतुष्पदस्वाधखाद्याशनपानमुम्वरश्रवणसुगन्धगन्धमहणधनधान्यगृहवस्त्राभग्णादीनां रक्ष रक्षार्या यनकरणे दक्षः चतुरः निपुणः । इदं विषयानन्दाख्यं रौद्रन्यानम् । तद्यया। "बहारम्भपरिप्रहेषु नियत रक्षार्थमभ्युद्यते, यसंकल्पपरम्परा वितनुते प्राणीह रौद्राशयः । यथालम्ब्य महस्वमुनतमना राजेत्यहं मन्यते, तत्तुर्य प्रवदन्ति निर्मलधियो रोद भरार्शसिनाम् ॥" इति विषयाभिलाषे आनन्द दर्षः विषयानन्दचतुर्य ध्यानम् ४ । कीहक्षः । तद्तचित्ताविष्टः तेषु हिंसामृतस्तेमविषयेषु गत वितं मनः । पिानश्यर मेयो कोद्रमविरतदेशविरतयोर्मवति। पशगुणस्थानस्वामिकामेत्यर्थः । रिध्यावाविपश्चममुणस्थानपर्यन्ताना जीवाना रौद्रध्यानं स्यात् । ननु अविरतस्य रीट्रध्यानं जाण्टीत्येव देशविरतस्य च संगच्छते। साधकं भवता यद, एकदेशेन विरतस्य कदाचित्प्राणातिपातायभिप्रायात् । धनादिसंरक्षणवाद कर्य न घटते, परमयं तु विशेषो देशसंयतस्य रौद्रमुत्पद्यते एव पर नरकादिगति. कारण सम भवति, सम्यत्वरसमण्डितत्वात् । तथा ज्ञानार्णवे । “कृष्णलेश्यावलोपेतं वभ्रपातफलाद्वितम् । रौद्रमेतसि जीवानी स्मात् पञ्चगुणभूमिकम् ॥" "करतादण्डपारुष्य धमकावं कठोरता । निर्दयस्व र लिङ्गानि रौदस्योकानि सूरिभिः॥" जिसे आनन्द आता है वह चौर्यानन्दि रौद्रध्यानी है । कहा भी है-प्राणियोंको जो रातदिन दूसरोंका धन चुरामेकी चिन्ता सताती रहती है, तथा चोरी करके जो अत्यन्त हर्ष मनाया जाता है, तथा चोरीके द्वारा पराया धन चुराये जानेपर आनन्द होता है, इन्हें चतुर पुरुष चोरीसे होनेवाला रौद्रध्यान कहते है, यह रौद्रयान अत्यन्त निन्दनीय है ।। दास, दासी, चौपाये, धन, धान्य, सुन्दर स्त्री वगैरह जितनी मी पराई श्रेष्ठ वस्तुएँ हैं, चोरीके बलसे वे सब मेरी हैं। इस प्रकार मनुष्य अनेक प्रकारकी चोरियोंकी जो चाह करते हैं वह तीसरा रौद ध्यान है, जो अपार दुःखोंके समुद्र डुबानेवाला है ।। अपने सी, दास, दासी, चौपाये, धन, धान्य, मकान, पक्ष, आभरण वगैरह विषय सामग्रीकी रक्षामें ही रात दिन लगे रहना विषयानन्दि रौद्रध्यान है। कहा मी है-इस लोकमें रौद्र आशयबाला प्राणी बहुत प्रारम्भ और बहुत परिग्राइकी रक्षाके लिये तत्पर होता हुआ जो संकल्प विकल्प करता है तया जिसका आलम्बन पाकर मनखी अपनेको राजा मानते हैं। निर्मलज्ञानके धारी गणधर देव उसे चौथा रौद्रप्पान कहते हैं ।। तखार्यसूत्रमें भी कहा है कि हिंसा, झूठ, चोरी और विषयसामग्रीकी रक्षामें आनन्द माननेसे रौद्रध्यान होता है। वह रौद्रध्यान मिथ्यादृष्टि से लेकर, देशविरत नामक पञ्चमगुणस्थान पर्यन्त जीवोंके होता है । वहाँ यह शंका हो सकती है कि जो व्रती नहीं हैं, अविरत है उनके भले ही रौद्रध्यान हो, किन्तु देशपिरतोंके रौदध्यान कैसे हो सकता है ? इसका समाधान यह है कि हिंसा आदि पापोंका एक देशसे त्याग करनेवाले देशविरत श्रावकके भी कभी कभी अपने धन वगैरह की रक्षा करनेके निमित्तसे हिंसा वगैरहके भाव हो सकते हैं। अतः रौदध्यान हो सकता है, किन्तु वह सम्यग्दर्शन रूपी रकसे शोभित है इस लिये उसका रौद्रध्यान नरक गतिका कारण नहीं होता है । चारित्रसारमें भी कहा है-यह चार प्रकारका रौद्ध्यान कृष्ण, नील और कापोत लेश्यावालेके होता है, और निम्यादृष्टिसे लेकर पंचमगुणस्थानवी जीवोंके होता है । किन्तु मिथ्याष्टियोंका
SR No.090248
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumar Swami
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages589
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size19 MB
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