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________________ ५१० स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा [गा०४४२एकदिनादिप्रमाणम् एकाद्वत्रिचतुःपञ्चषट्सप्ताष्टनवदशादिदिवरापक्षमासमत्वयनवर्षपर्यन्तं परिहरति चतुर्विधाहारं त्यजति । किमर्थम् । कर्मणां निर्जरार्थ ज्ञानदर्शनावरणवेदनीयमोहनीयायुर्नामगोत्रान्तरायाणाम् अष्टकर्मप्रकृतीनां निर्जरा गलनार्थ क्षयार्थम् , एकदेशकर्मक्षयनिमित्तम् । तथाहि वसुनन्दियत्याचारे “इसिरिय जावजीव विहं पुण अणसण मुणेदव्वं । इत्तिरिय साखं गिरावकख हवे बिदियं ॥" अनशनं पुनरित्तिरिय-यावज्जीवमेदाभ्या विविध ज्ञातव्यम्, इत्तिरिय साकांक्षे कालादिमिः सापेक्षम्, एतावन्त कालमहमनशनादिकमनुतिष्ठामीति, निराकांक्ष भवेत् द्वितीयं याषजीवम् आमरणान्तादपि न सेवनम् । सामसनद पम " रा सुनाहि गास जमणाणि ।नणगेगावलिआदीलदोविहाणाणि णाहारे।" अहोरात्रमध्ये भक्तवेले तत्रैकस्यां भक्तवेलायो भोजनमेकस्यां परित्यागः एकभक्तः । चतस्पो भवेलानां परित्यागचतुर्थ एकोपवासः । षण्णा भक्कलानां लागः पष्ठो द्विदिनपरित्सागः1 उपवासी । अष्टानां परिवागः अष्टमः या उपवासाः। दशमः चत्वारः उपवासाः, द्वादशः पभोपवासाः । आवलीशब्दः प्रत्येकम् , यनकावलीमुरजमध्यविमानपतिसिंहविक्रीडितादीनि । अनाहारः अनशन पष्ठाटमदशमद्वादशैर्मासार्धमासादिभिश्च यानि क्षमणानि कनककावल्यादीनि च यानि सपोविधानानि, तानि सर्वाभ्यनाहारः यावत् उत्कृष्टन षण्मासास्तत्सर्वं साकांक्षमनशनमिति । तथा चारित्रसारे । दृष्टफल मनसाधनावनुद्दिश्य फ्रियमाणमुपवसनम् अनशनमित्युच्यते। तत् किमर्थम् । प्राणीन्द्रियसंयमरागद्वेषायुक्छेदबहुकर्मनिर्जरणशुभघ्यानादिप्रास्र्थमू। सकृद्रोजनचतुर्थषष्ठारमदशमद्वादशपक्षमासऋतुअयनसंवत्सरेषु अशनपानखाद्यस्वावलक्षणचतु. पिधाहारनिवृत्तिः ॥४४१॥ उववासं कुब्वाणो आरंभं जो करेदि मोहादो। तस्स किलेसो अपरं कम्माणं णेव णिज्जरणं ॥४४२॥ छाया-[ उपवासं कुर्वाणः आरम्भ यः करोति मोहतः । तस्य लेशः अपर कर्मणां नैव निर्जरणम् ।। 1 तस्य प्रोषधप्रतिनः सः श्लेशः क्षुधातृषादिनाधया कायक्लेशः श्रमः निरर्थः निष्फलः । अपरम् अन्यच्च तस्य कर्मणो निर्जरण प्रसन्नता पूर्वक अशन, पान, खाद्य और लेह्यके भेदसे चारों प्रकारके भोजनको छोड़ देता है वही अनशन तपका धारक है । वसुनन्दि यत्याचारमें कहा है-अनशन दो प्रकारका होता है, एक साकांक्ष और एक निराकांक्ष । 'इतने काल तक मैं अनशन करूँगा' इस प्रकार कालकी अपेक्षा रखकर जो अनशन किया जाता है उसे साकांक्ष अनशन कहते हैं, और जीवन पर्यन्तके लिये जो अनशन किया जाता है उसे निराकांक्ष अनशन कहते हैं। साकांक्ष अनशनका स्वरूप इस प्रकार कहा है-एक दिनमें भोजनकी दो वेला होती है | उसमें से एक वेला भोजन करे और एक वेला भोजनका त्याग करे, इसे एकभक्त कहते है । चार वेला भोजनका त्याग करनेको चतुर्थ कहते हैं, यह एक उपवास हैं।छवेला भोजनका त्याग करनेको षष्ठ कहते हैं, यह दो उपवास हैं। इसी प्रकार आठ वेला भोजनका स्याग करनेको अष्टम कहते हैं, यह तीन उपवास हैं । दस वेला भोजनका त्याग करनेको दशम कहते हैं। दशम अर्थात् चार उपवास । बारह वेला भोजनका त्याग करनेको द्वादश कहते हैं । द्वादश माम पाँच उपवासका है । इसी तरह एक मास और अर्धमास आदि तक भोजनको ल्यागना तथा कनकावली एकापली आदि तप करना साकांक्ष अनशन है। साकांक्ष अनशन उत्कृष्टसे छ: महीना तक किया जाता है । चारित्रसारमें भी लिखा है-मंत्र साधन आदि लौकिक फलकी भावनाको त्यागकर प्राणिसंयम, इन्द्रियसंयम, राग द्वेषका विनाश, कमीकी निर्जरा और शुभध्यान आदिकी सिद्धिके लिये एक बार भोजन करना, या चतुर्थ, षष्ट, अष्टम, दशम, द्वादश, पक्ष, मास, ऋतु, अयन और संवत्सरमें चारों प्रकारके आहारका त्याग करना अनशन है ।। ४४१॥ अर्थ-जो उपवास करते हुए मोहवश
SR No.090248
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumar Swami
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages589
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size19 MB
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