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________________ -२१५] १०. शोकानुप्रेक्षा जदि ण हदि सा सती सहाव-भूदा हि सव्व-दब्याण । 'एकेकास-पएसे कह सा सव्वाणि वदंति ॥ २१५ ॥ [छाया-अदि न भवति मा शक्तिः खमारभूता हि सर्वदग्याणाम् । एकस्मिन् माकाशप्रदेशे में तत् पाणि बर्तन्ते। यदि नन्वझे सर्वदम्याणा, हीसि स्फुट नियमतोवा, सा अवगाहनशकिःबरकाशदामसमर्षता समावभूता खामाविकी चेत् तो ताई सर्वाणि इख्याणि एकस्मिन् एकस्मिन् आकाशप्रदेशे वर्ष वसन्ते सन्ति । पुनरपि यथा जलपूर्णे पडे लवणं माति, अन्य लोहाच्यादिकं मासि, तथा एकसिनाकाशप्रदेशे सर्वश्यकता मादि । सव क्रियान्मात्रः प्रवेशः इस्युके, भागमे प्रोकं च । "जेसी वि खेतनि अणुणा रुदेर बगदम्ब चाचपस मणिय बराबरकारण जस्सा वम परमाणेः परापरकारणं मगनद्रव्यं यावत् क्षेत्रमा परमाणुना ध्यान स्कर्ट र प्रदेयो ममिस इति ॥२१५॥ मरकामदयं मायति सवाणं दव्याणं परिणाम जो करेदि सो कालो। एकास-पएसे सो वहदि एकको पेष ॥ २१६ ।। [छाया-सर्वेषां स्याणा परिणाम मः करोति कालः । एकैकाकाप्रवेशे स व एकः ए] स बगरमविदः कालः नियकायते । स कः । यः गोपीवालाना परिणाम पर्याय नालीवादिलक्षणम् उत्पादम्पयधौम्पलक्षणं च । जीवानां खभावपर्याय विभावपर्याय क्रोधमानमायामरागद्वेषादिक नरनार पतिर्यग्देवादिरूसंच, पुद्रकाना खभावपयोवं रूपरसगन्याविपर्याय विभावपर्याय पणुकश्यणुकाविस्कन्धपर्यन्तपर्यायं करेतिकारमति बहादसतीयः । स प निषयकालः । एकेकाकाशप्रवेझे एकस्मिन् एकस्मिनाकर प्रदेशे कालाणुः बससे एक सविरोध नहीं पाता ।। २१९ ।। अर्थ-यदि सब द्रव्योंमें स्वभावभूत अवगाहन शक्ति न होती तो एक आकाशके प्रदेशमें सब द्रव्य कैसे रहते ।। भावार्थ-सब द्रोंमें अवगाहनशक्ति खमावसे ही पाई नाती है। यदि अवगाइनशक्ति न होती तो आकाशके प्रत्येक प्रदेशमें सब द्रव्य नहीं पाये जाते । किन्तु जैसे जलसे भरे हुए घमें नमक समा जाता है, सूईयां समा जाती है, वैसे ही श्राकाशके एक प्रदेशमें सब द्रव्य रहते हैं । आकाशके जितने भागको पुद्गलका एक परमाणु रोकता है उसे प्रदेश कहते हैं। उस प्रदेशमें धर्म,अधर्म, काल, आदि सभी द्रव्य पाये जाते हैं। इससे प्रतीत होता है कि समी द्रव्योंमें खाभाविकी अवगाहन शकि है । शका-यदि सभी द्रव्योंमें खाभाविक अवगाहन शक्ति है तो अवकाश देना आकाशका असाधारण गुण नहीं हुआ; क्यों कि असाधारण गुण उसे करते हैं जो दूसरोंमें न पाया जाये ! समाधान-यह भापति उचित नहीं है। सब पदार्थोंको अवकाश देना बाकाशका असाधारण लक्षण है, क्योंकि अन्यद्रव्य सब पदाथोंको अवकास देनेमें असमर्थ हैं। शहा-अलोकाकाश तो किसी मी द्रम्पको अवकाश नहीं देता अतः इसमें अवकाशदानकी शक्ति नहीं माननी चाहिये । समाधान अलोकाकाशमै आकाशके सिवाय अन्य कोई द्रश्य नहीं पाया जाता । किन्तु इससे पह अपने खभाषको नहीं छोड़ देता ॥ २१५ । अब काल द्रव्यका लक्षण कहते हैं । अर्थजो सब द्रव्यों के परिणामका कर्ता है यह कालद्रव्य है । वह कालद्रव्य एक एक वाकाशके प्रदेशपर एक एक ही रहता है । मारार्थ-जीव पुद्गल आदि सब प्रन्यो नयापन और पुरानापनरूप अश्या उत्पाद व्यय और प्रौव्यरूप परिणाम यानी पर्याय प्रतिसमय हुआ करती है। वह पर्याय दो प्रकारकी १मोबास गरबास मालि। मसमपतिको।
SR No.090248
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumar Swami
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages589
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size19 MB
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