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१०. लोकानुप्रेक्षा
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उत्कृष्टायुरर्धसागरोपमम् । तत् द्वितीयपटले जघन्यम् । एवं त्रिषष्टिपटलेषु ज्ञेयम् ॥ भवनवासिनां तु 'स्थितिरसूर नागसुपर्णद्वीपशेषाणां सागरोपमत्रिपल्योपमार्थहीनमिता । असुरकुमाराणां उत्कृष्टा स्थितिः खागरोपमा एका १ नागानो पश्यश्रयमुत्कृष्टायुः ३ । सुपर्णाना सापल्यद्वयमुत्कृष्टायुः । द्वीपानामुत्कृष्टायुः पत्यद्वयं २ । विधुरकुमारादीनां षट्काराणां प्रत्येक सार्धं पस्योपममेकम् - उत्कृष्टा स्थितिर्भवति । भवनवासिदेवानां दशसहस्रवर्षाणि १०००० जथन्या स्थितिर्भवति । परा पत्योपममधिकम् व्यन्तराणाम् उत्कृष्टम् आयुः पश्योपमैकं किंचिदधिकं भवति । मन्य तु दशवर्षसहस्राणामायुः । ज्योतिषकाणां परमायुः पत्योपयमेकं किंचिदधिकं भवति । जघन्यं तु तदष्टभागोऽपरा पत्योपमस्याष्टमो भागः । नारका तु वे ११ सप्त ७ दश १० सप्तदश १७ द्वाविंशति २२ श्रयास्त्रेशत्सागरोपमा सश्वानां परा स्थितिः । रमप्रमार्या नारकाणां उत्कृष्टायुः सागरः १ शर्क राप्रभार्या नारकाण त्रिसागरोपमा परा स्थितिः ३ । वालुकायां नारकाणामुत्कृष्टायुः सागराः ७ । पद्मप्रभाय नारकाणां दशसागरोत्कृष्टाशुष्कम् १० । धूमप्रभायां नारकार्णा सप्तदश सागराः १७ उत्कृष्टायुः । तमः प्रभायां नारकाणां द्वाविंशति सागरोपमा परा स्थितिः २२ । महातमः प्रमायां नारकाणां श्रयत्रिंशत्सागरोपमोत्कृष्टायुः ३३ ॥ विस्तरेण तु रमप्रभायाः प्रथमनर कपटले नबतिवर्षसहस्राणि परा स्थितिर्भवति । जघन्ये तु दशवर्षसहस्राण्यायुर्ज्ञेयम् । यदायुः प्रथमनरकपटले वा उत्कृष्टं तदायुः द्वितीयनर कपटले ना जघन्यायुः ॥ इत्यायुः कर्मवर्णना पूर्णा जाता च ॥ १६५ ॥ वर्षान कि
अथै केन्द्रियादिजीवानां शरीरावगाहमुत्कृष्टजघन्यं गाधादशकेन । ह—
अंगुल असंख-भागो एयक्लं- चउक्ख- देह परिमाणं । जोयणे - सहस्समहियं परमं उक्कस्यं जाण ॥ १६६ ॥
पटल में जघन्य आयु एक पल्यसे कुछ अधिक है। सौधर्म और ऐशान स्वर्गमें उत्कृष्ट आयु दो सागर है । वही एक समय अधिक सनत्कुमार और माहेन्द्र स्वर्गके देवोंकी जघन्य आयु है । इसी तरह ब्रह्म ब्रह्मोत्तर आदि स्वगों में भी जानना चाहिये । अर्थात् जो नीचे युगलमें उत्कृष्ट स्थिति है वही एक समय अधिक स्थिति उसके ऊपरके युगलमें जधन्य स्थिति हैं। तथा सौधर्म और ऐशान स्वर्गके प्रथम पटरूमें उत्कृष्ट आयु आधा सागर है वही उसके दूसरे पटलमें जघन्य आयु है। इसी तरह तरेसठ पटलोंमें जानना चाहिये । भवनवासियोंमें असुरकुमारोंकी उत्कृष्ट आयु एक सागर है, नागकुमारोंकी उत्कृष्ट आयु तीन पल्य है, सुपर्णकुमारोंकी उत्कृष्ट आयु दाई पल्य हैं, द्वीपकुमारोंकी उत्कृष्ट आयु दो पल्य है, शेष विद्युत्कुमार आदि छः प्रकारके भवनवासियोंकी उत्कृष्ट आयु डेढ़ डे पल्प है । तथा भवनवासी देवोंकी जधन्य आयु दस हजार वर्ष है । व्यन्तरोंकी उत्कृष्ट आयु एक पल्यसे कुछ अधिक है । जघन्य आयु दस हजार वर्ष है। ज्योतिष्क देवोंकी उत्कृष्ट आयु भी एक पल्यसे कुछ अधिक है। तथा जघन्य आयु एक पत्यका आठवां भाग है। रत्नप्रभामें नारकियोंकी उत्कृष्ट आयु एक सागर है। शर्कराप्रभामें उत्कृष्ट आयु तीन सागर हैं । बालकप्रभा में उत्कृष्ट आयु सात सागर है। पंकप्रभा उत्कृष्ट आयु दस सागर है। धूमप्रमानें उत्कृष्ट आयु सतरह सागर है । तमःप्रभामें उत्कृष्ट आयु बाईस सागर है। और महातमः प्रभा में उत्कृष्ट आयु तेतीस सागर है । विस्तारसे रत्नप्रभाके प्रथम नरक पटल में नौवे हजार वर्ष प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति है और जवन्य आयु दस हजार वर्ष है, तथा प्रथम नरकपटल में जो उत्कृष्ट आयु है वह दूसरे नरकपटलमें जधन्य है । इस प्रकार आयुका वर्णन पूर्ण हुआ ।। १६५ || अब एकेन्द्रिय आदि जीवोंके शरीर की जघन्य और उत्कृष्ट अवगाइना दस गाथाओंसे कहते हैं । अर्थ-एकेन्द्रिय चतुष्कके शरीरकी अवगाहनाका प्रमाण अंगुलके असं
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१ ग २ व जोहण कार्तिके० १४