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१४ लामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा
[गा०१६६[छाबा-देवानां नारकागा सागरसंख्या भवन्ति प्रसिंशत् । उत्कृष्ट च जघन्यं वर्षाणां दश सहलाण देवाना नाराणा बोस्कृष्ठमायुनयविंशत्सागरोपमप्रमाण भवति । च पुनातेषां देवाना मारवाणां च जपन्यायुर्दशवर्षसहस्राणि १....। तथा हि। "बेसलदसमचोदसखोलसभट्ठारवीसवावीमा । एयाषिया य एसो सकादिसु सागरुक्माण ॥" २०७।१०।१४।१६।१८।१०।२२। २३ । २४ । २५ २६ । २७ २८ २९ । ३.१ ३१ १२ । ३३ । सौधर्मशानोदेवानां सागरोपमे परमायुषः स्थितिः २। अधातायुषोऽक्षयेतदुक्तम् । पातायुषोऽपेक्षया पुन सागरोप सागरोपमानाधिके भवतः 11 एवम् अर्धसागरोपममधिकं पातायुषां देवानां सहस्रारकल्पपर्यन्तम्, ततः समुत्पत्तेरभावात् । सनत्कुमारमाहेन्द्रयोः देवानां परमायुः सप्तसागरोपमाणि ७ । प्राब्रह्मोत्तरयोदेवाना परमायुः पशसागरोपमाणि १० । किंतु लौकान्तिकानां सारखतादीनाम् अटो सागरा: । लान्तधकापिष्टयोः देवाना अतुईया सागराः १४ । शुक्रमहाशुक्रयोः षोडश सागराः १६ । सतारसहनारयोरष्ठावशसागराः १८ । आनतप्राणतयोविंशतिः सागरा: २. । भारणाच्युतयोविंशतिः सागराः २२ । सुदर्शने अयोविशतिरब्धीनां परमा स्थितिः २३ । अमोधे पतुर्विंशतिः सागराः २४ । सुप्रबुद्ध पञ्चविंशतिः सागराः २५ । यशोधरे सागराः २६ । सुभदे सामराः २७ । सुविशाले सागरा: २८ । सुमनति सागराः २९ । सौमनस्ये सागराः३०। प्रीतिकरे सागराः ३१॥ मादित्ये सागराः३३ सर्वार्थसिद्धी प्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाणि ३३॥ जघन्य तु 'भपरा पस्योपममधिकम् सौधर्मशानयोः प्रथमपटले अन्यायुःस्थितिः एकपल्योप किन्धिदधिकं भवति । सौधर्मशानयोकरायायुषः स्थितिः २। सनत्कुमारमाहे. प्रयोदेवानां समयाधिका जघन्या सा स्थितिः । एषमुपयुपरि ब्रममझोत्तराविषु ज्ञेया। तथा सौधर्मशानयोः प्रथमपटले
जघन्य आयु दस हजार वर्ष है । कहा भी है-- त्रैमानिक देवोंकी आयु क्रमश दो, सात, दस, चौदह सोलह, अठारह, बीस और बाईस सागर है और आगे एक एक सागर अधिक है ।' अर्थात् सौधर्म और ऐशान स्वर्गमें देवोंकी उत्कृष्ट स्थिति दो सागर है । यह स्थिति अघातायुष्ककी अपेक्षासे कही है। घातायुष्ककी अपेक्षा उत्कृष्ट स्थिति आधा सागर अधिक दो सागर होती है । आशय वह है कि जिस जीवने पूर्वभवमें पहले अधिक आयुका बन्ध किया था पीछे परिणामोंके वशसे उस आयु को घटाकर कम कर दिया वह जीव घातायुष्क कहा जाता है । ऐसा घातायुष्क जीव अगर सम्यराष्टी होता है तो उसके उक्त उत्कृष्ट आयुसे आधा सागर अधिक आयु सहस्रार स्वर्गपर्यन्त होती है; क्योंकि घातायुष्क देव सहनार वर्गपर्यन्त ही जन्म लेते हैं, उससे आगे उनकी उत्पत्ति नहीं होती । अस्तु, सनत्कुमार माहेन्द्र स्वर्गके देवोंकी उत्कृष्ट आयु सात सागर है । ब्रह्म महोत्तर खर्गके देवोंकी उत्कृष्ट आयु दस सागर है । किन्तु ब्रह्म स्वर्गके अन्तमें रहनेवाले सारखत आदि लौकान्तिक देवोंकी उत्कृष्ट आयु आठ सागर है । लान्तव कापिष्ठ वर्गके देवोंकी आयु चौदह सागर है । शुक्र म्हायुक्र स्वर्गके देवोंकी उत्कृष्ट आयु सोलह सागर है । सतार और सहनार खर्गके देवोंकी उत्कृष्ट आधु भट्ठारह सागर है । आनत और प्राणत खर्गके देवोंकी उत्कष्ट आयु वीस सागर है। आरण और अच्युत खर्गके देवोंकी उत्कृष्ट आयु बाईस सागर है । प्रथम, सुदर्शन अवेयकमें तेईस सागरकी उत्कृष्ट स्थिति है । दूसरे अमोघ अवेयकमें चौबीस सागर, तीसरे सुप्रबुद्धमै पचीस सागर, चौथे यशोधरमें २६ सागर, पांचवें लभद्र में सत्ताईस सागर, छठे सुविशालमें अट्ठाईस सागर, सातवें सुममसमें उनतीस सागर, आठवें सौमनस्यमें तीस सागर और नौवें प्रीतिकर अवेयकमें इकतीस सागर उत्कृष्ट स्थिति है। आदिल पटलमें स्थित नौ अनुदिशोंमें असीस सागर तथा साथसिद्धि आदि पंच अनुत्तरोंमें तेतीस सागरकी उत्कृष्ट स्थिति है । सौधर्म और ऐशान खर्गके प्रयम