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________________ - १६५ ] १०. लोकानुप्रेक्षा १०३ न्यायुः ४९ । चतुरक्षे षण्मासाः, दंशमशक मक्षिकाभ्रमरादीनां चतुरिन्द्रियजीवानामुत्कृष्टं षण्मासायुः ६ । एशक्षे श्रीणि पल्यानि, उत्तमभोगभूमिजानां मनुष्यतिरक्षामुत्कृष्टेन श्रीणि पत्यान्यायुः ३ । इत्युत्कृष्टमायुतम् ॥ १६३ ॥ अप सर्वेषां तिर्यग्मनुष्याणां जघन्यायुर्देवनारकाणां च जघन्योत्कृष्ट मार्गाथाइयेनाह सम्व जहणणं आऊं लद्धि- अपुष्णाणं सन्त्र-जीवाणं । मज्झिम-हीन-महुतं' पज्जत्ति जुदाण णिकि ॥ १६४ ॥ [ छाया - सर्वजधन्यम् आयुः लब्ध्यपूर्णानां सर्वजीवानाम् । मध्यमहीन मुहूर्तं पर्याप्ततानां निःकृष्टम् ॥ ] भ्य पर्याप्तानां सर्व जीवानां लब्ध्यपर्यामै केन्द्रियजीवानां लब्ध्यपर्यासद्वीन्द्रियप्राणिनां लब्ध्यपर्यमित्रीन्द्रियप्राणिनां लब्ध्यपर्या चतुरिन्द्रियप्राणिनां लब्ध्यपर्याप्तपश्वेन्द्रिय से झिजीवा झिजीवानां च सर्वजधन्यमायुः क्षुद्रग्रहणम् उच्ता सस्यैकस्याष्टादशो भागः लक्ष्यः मध्यमान्तर्मुहूर्तमात्रं । तथा वसुनन्दिन्यत्याचारे सर्वलब्ध्यपर्याप्तानाम् उच्वासस्य किंचिन्यूनाटादशो भागः । प्रखत्तिजुदाणं पर्यामियुक्तानां पृथिव्यप्ते त्रोवायुवनस्पतिकायिकै केन्द्रियाणां पर्याप्तानां शंखादिद्वीन्द्रिमपान गोम्यादिन्द्रियपर्याप्तानां भ्रमरादिचतुरिन्द्रियपर्याप्तानां गोगजाश्वहं सादीनां कर्मभूमिजानां कर्मभूमिप्रतिभागजानो पछेन्द्रियतिरश्च कर्मभूमिजत्रिषष्टिशलाका पुरुषचरम देहादिवर्जितमनुष्याणां च मध्यमहीन मुहूर्त बिनरष्ट मध्यमान्तमुहूर्त मात्र निकाएं जघन्यायुः हीनमुहूर्त मिमुहूर्त था, किंतु पूर्वोक्तान्मुहूर्तात् अयं मद्दान्मुहूर्तः ॥ १६४ ॥ देवा णायाणं सायर-संखा हवंति तेतीस । उचि जणं वासाणं दस सहस्वाणि ॥ १६५ ॥ * तेइन्द्रिय जीवोंकी उत्कृष्ट आयु ४९ दिन है । डोस, मच्छर, मक्खी, भौंरा आदि चौइन्द्रिय जीवोंकी उत्कृष्ट आयु छ: मास है । उत्कृष्ट भोगभूमिया मनुष्य तिर्यञ्चोकी उत्कृष्ट आयु तीन पल्य है। इस प्रकार उत्कृष्ट आयुका वर्णन समाप्त हुआ || १६३ || अब तिर्यश्च और मनुष्योंकी जघन्य आयु तथा देव और नारकियोंकी जघन्य और उत्कृष्ट आयु दो गायाओंसे कहते हैं । अर्थ-लब्ध्यपर्याप्तक सब जीवोंकी जघन्य आयु मध्यम हीनमुहूर्त है और पर्यातक सब जीवोंकी जघन्य आयु मी मध्यम हीन मुहूर्त है ॥ भावार्थ-लब्ध्यपर्याप्त एकेन्द्रिय जीवोंकी, लब्ध्यपर्याप्तक दोइन्द्रिय जीवोंकी, लब्ध्यपर्यातक तेइन्द्रिय जीवोंकी, लब्ध्यपर्याप्तक चौइन्द्रिय जीवोंकी और लब्ध्यपर्यातक पश्चेन्द्रिय असंज्ञी तथा संज्ञी जीवोंकी सबसे जघन्य आयु क्षुद्र भत्र ग्रहण है जो एक श्वासका अट्ठारहवां भाग है। यह मध्यम अन्तर्मुहूर्त मात्र है। जैसा कि वसुनन्दि श्रावकाचार में भी बतलाया है कि सब लब्ध्यपर्याप्तोंकी जघन्य आयु बास के अट्ठारह भाग है । तथा पृथिवीकायिक, अप्कायिक, तैजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय पर्यातकोंकी, शंख आदि दोइन्द्रिय पर्यातकोंकी, बिच्छु आदि तेइन्द्रिय पर्याप्तकोंकी, भौरा आदि चौइन्द्रिय पर्याप्तकोंकी, गाय हाथी घोड़ा हंस आदि कर्मभूमिया पञ्चेन्द्रिय तिर्यों की तथा त्रिषष्टिशलाका पुरुष और चरमशरीरी पुरुषोंके सिवा शेष कर्मभूमिया मनुष्योंकी जघन्य आयु भी मध्यम अन्तर्मुहूर्त मात्र है । किन्तु पूर्वं मध्यम अन्तर्मुहूर्तसे यह मध्यम अन्तर्मुहूर्त बड़ा है ।। १६४ ॥ अर्थ-देवों और नारकियों की उत्कृष्ट आयु तेतीस सागर है। और जघन्य आयु दस हजार वर्ष है || भावार्थ- देवों और नारकियोंकी उत्कृष्ट आयु तेतीस सागर प्रमाण होती है और १ ब आब, म आएं, ग आयु ९ छ म सग पुण्णाण । मग १] वेतसा । ७ ब आउ । अंगुळे इत्यादि । ४] निकिहूं ५ स देणं । 1
SR No.090248
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumar Swami
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages589
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size19 MB
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