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________________ स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा सम-णारयहिंतो असंख-गुणिदां हवंति णेरइया । जाय पढमं र बहु-दुक्खा होति' देहिद्वौ ॥ १५९ ॥ ५५ ९५ [ श्छाया - सप्तमनारकेभ्यः असंख्यगुणिताः भवन्ति नैरयिकाः । यावत् च प्रथमं नरकं बहुदुःखाः भवन्ति अघोऽधः ॥ ] सप्तमनरकात् तमस्तमः प्रमामाघवीनाम्रः सकाशात् उपर्युपरि नारकाः यावत् प्रथमगरके रत्नप्रभाघर्मानामप्रथम नरकपर्यन्तं असंख्यातगुणिता नारकाः भवन्ति । सप्तमे मानवीनानि नरके नारकाः खोकाः, श्रेण्यसंख्येयभामप्रमिताः निजद्वितीय वर्गमूलमक जगच्छ्रेणिमात्रा नारकाः भवन्ति । पले मघवनानि नरके सप्तम पृधिवीनारकेभ्यः षष्ठतमःप्रभापृथिवीनारका असंख्यातगुणाः, निजतृतीय वर्गमूलभाजित जगच्छ्रेणिमात्रा भवन्ति । वेभ्वव बन्नारकेभ्यश्च पञ्चमपृथिवीनारका असंख्यातगुणाः, पञ्चमेऽरिष्टानामनि नरके निजवलवर्गमूलभतजगच्छ्रेणिमात्रा मारकाः स्युः । तेभ्यश्च पथमपृथिवीनार केभ्यश्च पतुर्थपूथिवीनारकाः असंख्यातगुणाः सन्तः अलनानानि चतुर्थनरके व्यष्ठमनिजवर्गमूलविभक्तज गच्छ्रेणिमात्रा नारका मदन्ति । तेभ्यश्चतुर्थना रकेभ्यस्तृतीय पृथिवीनारकाः असंख्यात गुणाः सन्तः श्रालुकाप्रभामेघानामनि तृतीयनरके दशमनिजवर्गमूलापहृतजगच्छ्रेपिमात्रा नारका भवन्ति । वेपथ तृतीयपृथिवी नारकेभ्यो द्वितीयनर के नारकाः असंख्यातगुणाः, द्वादशनिअ वर्गमूलस मगरलेनिमात्राः सामानि द्वितीये तीन तीन उपरिम, मध्य और अधोग्रैवेयकका संकेत ३ का चिह्न है । तथा नौ अनुदिशोंका पहले दूसरे, सातवें आठवें स्वर्गयुगलमें दो दो इन्द्रसम्बन्धी देवोंका प्रमाण है। अतः वहाँ यो एक १११ रखे हैं । और तीसरे, चौथे, पाँचवें और छठे युगलमें एक एक ही इन्द्र होता है अतः यहाँ एक एक और एक बिन्दी ११० इस तरह रखी है ।। १५८ ॥ अर्थ -सातवें नरकरी लेकर ऊपर पहले नरक तक नारकियोंकी संख्या असंख्यात गुणी असंख्यात गुणी है। तथा प्रथम नरकसे लेकर भीचे नीचे बहुत दुःख है ॥ भावार्थ - महातमः प्रभा नामक पृथ्वी में स्थित माघवी नामके सातवें नरकसे लेकर ऊपर ऊपर रमप्रभानामक पृथ्वीमें स्थित धर्मा नामके प्रथम नरकतक नारकियोंकी संख्या असंख्यातगुणी है । अर्थात् सातवें माधवी नामके नरकमें सबसे कम नारकी हैं । उनका प्रमाण जगतश्रेणिके दूसरे वर्गमूलसे भाजित जगतश्रेणि प्रमाण है। छठे मघवी नामके नरक में सातवें नरकके नारकियोंसे असंख्यात गुने नारकी हैं। उनका प्रमाण जगतश्रेणिके तीसरे वर्णमूल से भाजित जनत श्रेणि प्रमाण है। छठे नरक के नारकियोंसे पांचवे नरकके नरकियोंका प्रमाण असंख्यातमुमा है जो जगतश्रेणिके छठे वर्गमूलसे भाजित जगतश्रेणि प्रमाण है। उन पांचवें नरकके नारकियोंसे चौथे नरक के नारकियोंका प्रमाण असंख्यातगुणा है जो जगतश्रेणिके आठवें वर्गमूळ भाजित जगतवेणिप्रमाण है। चौथे नरक से तीसरे नरकके नारकियोंका प्रमाण असंख्यातगुणा है । अतः वालुकाप्रभाभूमिमें स्थित मेघा नामके तीसरे नरकमें जगतश्रेणिके दसवें वर्गमूलसे भाजित जगतश्रेणिप्रमाण नरकी हैं। तीसरे नरकके नारकियोंसे दूसरे नरकमें नारकी असंख्यातगुने हैं। अतः वंशा नामके दूसरे नरकमें जगतश्रेणिके बारहवें वर्गमूलसे भाजित जगतश्रेणि प्रमाण नारकी हैं। दूसरे नरकके नारकियोंसे अर्स ख्यातगुने प्रथम नरकके नारकी हैं। सो समस्त नरकोंके नारकियोंका प्रमाण धनांगुलके दूसरे वर्ग - मूलसे जगतश्रेणिको गुणा करनेसे जो प्रमाण आवे, उतना है। इस ऊपर कहे छ: नरकोंके नारकियों के प्रमाणको जोड़कर इस प्रमाणमें से घटा देने पर जो शेष रहे उतना प्रथम नरकके नारकियोंका प्रमाण है। तथा नीचे नीचे नारकी उत्तरोत्तर अधिक २ दुखी हैं । अर्थात् प्रथम नरकके दुःस्खसे दूसरे 1 १ ग्रणिया । २ स ग इति । १ ब म विडिंडा । १०० [ गा० १५१९ L
SR No.090248
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumar Swami
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages589
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size19 MB
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