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________________ ९६ स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा [ गा० १५७- यहां देय भाग के भागहार में सब से अधिक चार बार नौ के अंक हैं । और सम दोइन्द्रिय तेइन्द्रिय चौइन्दिय पञ्चेन्द्रिय समभाग देयभाग समभाग ७ = 6 ४६४ ७ ७ =< ४१९१९ ७ ४९९ देयभाग ४|४|१|९||s = 19 ४1९18 ७ ₪ = ४९९ ७ = ४९३४ २८२४१९ ४१४९९९९ ७ भाग भागहार में नौका अंक एक ही है। इसलिये भागहार में सर्वत्र चारबार नौका अंक करने के लिये सम भाग में तीन बार नौ के अंक का गुणाकार और भागहार करो। तथा देय राशिके भागहारमें चारका अंक नहीं है और समभागके भागहारमें चारका अंक है । इसलिये समच्छेद करने के लिये देयराशिमें सर्वत्र चारका गुणाकार और भागहार रखो। तो सर्वत्र चार बार नौके अंकका भागहार करना है अतः चूंकि दो इन्द्रियकी के शिमें दो बार नौके भागहार है इस लिये वहाँ दो बार नौके अंकको गुणाकार और भागहारमें रखो । तेइन्द्रियकी देयराशिमें तीनबार नौके अंकका भागद्वार है अतः वहाँ एक बार मौके अंकको गुणाकार और भागहारमें रक्खो । चौइन्द्रिय और पश्चेन्द्रियकी देय राशिमें चार बार नौ का भागहार है ही, अतः वहाँ और गुणाकार और भागहार रखनेकी जरूरत नहीं है । इस तरह समच्छेद करनेपर समभाग और देय भाग की स्थिति इस प्रकार होती है यहाँ सुमभागका गुणाकार दोइन्द्रिय =GIRIS13 ४|४|१९|| =& आठ और तीन तेइन्द्रिय =८९९९ ४|४|१|| ७ 2 ४९९१९९४/९/९/९/१ =& ४।९१४ =33831 ४१४१९१९९९ V ७ ७ ४. ४४९९/९/९ ७ बार नौ है । इनको परस्पर में इन्द्रिय पञ्चेन्द्रिय =ISIS ४१४१९४९/९/९ ७ =१४ ४४९९९९ ७ गुणनेसे (८x९x९x९ = ५८३२ ) अठावनसौ बत्तीस होते हैं । तथा देय भागके गुणाकारमें दोइन्द्रिय के ८x४४९x९ को परस्पर में गुणा करने से २५९२ पच्चीस सौ बानवें होते हैं । तेइन्द्रिय के ८x४४९ को परस्परमें गुणनेसे २८८ दो सौ अठासी होते हैं। चौइन्द्रियके ८x४ को परस्परमै गुणाकरने से ३२ बत्तीस होते है और पञ्चेन्द्रियकें चार ४ ही है । तथा भागार में सर्वत्र चार के गुणाकारको अलग करके चार बार नौ के अंकोंको परस्पर में गुणा करने से ९x९x९x९=६५६१ पैंसठ सौ इकसठ होते हैं । इस तरह करने से समभाग और देयभाग की स्थिति इस प्रकार हो जाती है I
SR No.090248
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumar Swami
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages589
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size19 MB
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