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________________ -१५७] १०. लोकानुप्रेक्षा देने से एक भाग बादर और बहुभाग सूक्ष्म जीव होते हैं । बादर एकेन्द्रिय जीओंकी संदृष्टि १३-१ इस प्रकार है और सूक्म जीवों की संदृष्टि १३-६ है । नीचे असंख्यात लोकका चिद्ध ७ का अंक है । सो बादर एकेन्द्रिय राशि १३-१ को असंख्यात लोक (७) कर भाग देनेसे बहु भाग मात्र अपर्याप्त और एक भाग मात्र पर्याप्त जीव होते हैं | सो बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त राशिकी संदृष्टि १३- ऐसी हे और बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त राशि की संदृष्टि ३१-11 ऐसी है । सूक्ष्म एकेन्द्रिय राशि १३-१ को संख्यात (५). का भाग देने पर बहु भाग प्रमाण पर्याप्त राशि और एक भाग प्रमाण अपर्याप्त राशि आती है । सो यहां पर्याप्त राशिकी संदृष्टिं १३-१६ यह है और अपर्याप्त राशिकी संदृष्टि १३-१६ यह है । अब स राशिको संदृष्टिका खुलासा करते हैं वह इस प्रकार है-जगत्प्रतरका चिह्न - यह है। प्रतरांगुलका चिह्न ४ का अंक है। और असंख्यात का चिह ७ का अंक है । प्रतरांगुलके असंख्यातवें भागका भाग जगत्प्रतरको देनेसे बस राशिका प्रमाण माता है । सो बस गाशिका रकेत ४ या है। आवलीके असंख्यातवें भागका संकेत नौ का अंक है । सो सराशिमें आवलीके असंख्यातवें भाग (९) का भाग देकर बहु भाग निकालो। सो बहुभाग राशिका प्रमाण सर यह है । इसको चार हिस्सोंमें वांटनेके लिये चारका माग =८ देनेसे ऐसे हुआ ४९४ । यह एक एक समान भाग दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चौइन्द्रिय और पंचें. न्द्रिय जीवोंको दे दो। शेष एकभाग रहा उसका प्रमाण यह है । इसको आवलीके असंख्या -t तर्वे भाग (९) का भाग देकर बहुभाग निकाला सो ४९९ इतना हुआ। यह दो इन्द्रियको देदो। शेष एक भाग ११९९ ऐसा रहा । इसको आवलीके असंख्यातवें भागका भाग देकर बहुभाग निकाला सो ६५ इतना हुआ। वह तेइन्द्रियको देदो । शेष एक भाग ४४ रहा । इसमें भी आनलीने असंख्यातवें भागका भाग देनेसे बहुभाग ४।९।९९।९ ऐसा हुआ। यह चौइन्द्रियको देना । शेष एकभाग रहा ॥९।९।९।९ यह पश्चेन्द्रियको देना । सम भाग और देय भागका प्रमाण इस प्रकार हुआ
SR No.090248
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumar Swami
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages589
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size19 MB
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