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________________ १०. लोकानुप्रेक्षा छाया-संमूर्छनाः खलु मनुजाः श्रेण्यसंख्यातभागमात्राः मल । गर्भजमनुजाः सर्वे संख्माताः भवन्ति नियमेन n] सम्मुच्छेना मनुध्या लाएपर्यामका एवं । सेवियसंखिजभाममिता श्रेणेर संख्यातकभागमात्रा: भवन्ति । नियमतः सर्वे गर्भजमनुष्याः संख्यातमात्राः स्युः । तथा गोम्मरसारे मनुष्यगतिजीवसंख्या गायात्रयेणोक्त च । "सेढी सूईअंगुलभादिमनदियपदभाजिदेगूणा 1 सामण्णमणुसरासी पंचमकदिघणसमा पुण्णा ।।" अगच्छ्रेणि सूच्याहलस्य प्रथम. मूलतृवीयमूलाभ्यां भक्त्वा तलमधे एकरूपेऽपनी ते प्रराशिः सामान्यमनगराशि: स्यात ।M: हिमपवर्गधारासंबन्धिपश्वमवर्गस्य पादालसंशस्य घनप्रमाणाः पयोप्तमनुष्या भवन्ति । ४२ । ४२ = । ४२ = । अस्मिन् राशी परस्पर मुणिते यालन्ध त राशिमक्षरसंज्ञयाक्रमेण कथयति । “तललीनमधुगविमलं धूमसिलागाविचौरमयमेरू । तटहरिखममा होति तु माणुसपञ्जनसंखेका ॥" सप्तवतुर्वारकोटिद्वानवतिलक्षाष्टाविंशतिसहसैकशतद्वाषष्टित्रिचारकोट्येकरवाशालक्षद्वाबस्वारिंशत्सहस्रक्टूशतत्रिचत्वारिंशद्विवारकोरिसप्तत्रिंशाहक्ष कोनषष्टिसइसत्रिशतचतुःपक्षाशकोठ्येकानयत्वारियालक्षधाशरसहस्रतिशतषत्रिंशत्प्रमिता पर्याप्तमनुष्याणां संख्या भवति । ७,९१२८१६२,५१४१६४३,३५५९३५४, १९५०१३६ । 'पजसमणुस्साणं तितश्यो माणुसीण परिमाणे । सामण्या पुण्णूणा मणुव अपजतमा होति । पर्याप्ता मनुष्यराशेः त्रिचतुर्भागो भानुषीणां दव्यत्रीणां परिमाणं भवति । १२ : ४२% ४२% । सामान्यमनुष्यराशी पर्याप्तमनुष्यराशावपनीते अपर्यापमनुष्यप्रमाणं भवति 18-इति संख्या गता । १५१॥ अथ सान्तरमार्गमामाह असंख्यातः भाग मात्र हैं। और गर्भज मनुष्य नियमसे संख्यातही हैं ।। भावार्थ-सम्मर्छन मनुष्य लन्थ्यपर्याप्तक ही होते हैं । उनका प्रमाण श्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र है । तथा सन गर्भज मनुष्य नियमसे संख्यात ही होते हैं । गोम्मटसारमें मी तीन गाथाओंके द्वारा मनुष्य गतिमें जीवोंकी संख्या इस प्रकार बतलाई है-सूच्यगुलके प्रथम वर्गमूल और तृतीय वर्गमूलसे जगत् श्रेणिमें भाग दो । जो लम्ध आवे उसमें एक कमकर लो। उतना तो सामान्य मनुष्यराशिका प्रमाण है । तथा द्विरूप वर्गधारा सम्बन्धी पाँचवें धर्गका, जिसे बादाल कहते हैं, धन प्रमाण पर्याप्त मनुष्योंका प्रमाण हैं । आशय यह है कि दोसे लेकर जो वर्गकी धारा चलती है उसे द्विरूपवर्गधारा कहते हैं । जैसे २४२ - ४ या प्रथम वर्ग है। ४४४ - १६ यह दूसरा वर्ग है । १६४१६ =२५६ यह तीसरा वर्ग है । २५६५ २५६ = ६५५३६ यह चौथा वर्ग है । ६५५३६ ४६५५३६ = ४२९५२६७२९६ यह पांच्या वर्ग है ।.इसके शुरुके ४२ के अंकके ऊपरसे इस संख्याका संक्षिप्त नाम बादाल है । इस बादालको तीन वार परस्परमें गुणा करनेसे (४२९५२६७२९६४४२९५२६७२९६४४२९५२६७२९६) जो राशि पैदा होती है गोम्मटसारमें अक्षरोंके संकेतके द्वारा एक गाथामें उस राशिको इसप्रकार बतलाया है 'तललीनमधुगविमलं धूमसिलागाविचोरभयमेरू । तटहरिखनसा होति दु माणुसपमतसंखका ।' ।। २ ॥ इसका अर्थ समझने के लिये अक्षरोंके द्वारा अंकोंको कहनेकी विधि समझ लेनी चाहिये जो इस प्रकार है-ककारसे लेकर प्रकार तकके नौ अक्षरोंसे एक से लेकर नौ तकके अंक देना चाहिये । इसी तरह टकारसे लेकर धकार तकके नौ अक्षरोंसे एक, दो, तीन आदि अंक लेना चाहिये । इसी तरह पकारसे लेकर मकार तकके अक्षरोंसे एक दो आदि पांच अंक तक लेना चाहिये । इसी तरह यकारसे लेकर हकार तक आठ अक्षरोंसे क्रमशः एकसे लेकर आठ अंक तक लेना चाहिये । जहाँ कोई स्वर हो, या अकार हो अथवा नकार लिखा हो तो वहाँ शून्य लेना । सो यहाँ इस विधिसे अक्षरोंके द्वारा अंक कहे हैं। उन अंकोंको बाई ओरसे लिखनेसे वे इस प्रकार होते हैं-७,९२२८१६२,५१४२६४३,३७५९३५४,३९५०३३६ । सो सात कोडाकोड़ी कोड़ाकोड़ी, बानवे लाख अटाईस हजार एकसौ बासठ
SR No.090248
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumar Swami
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages589
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size19 MB
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