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________________ १०. लोकानुमेशा शुक्रनमिधानखर्गदर्य सातव्यम् । तदनन्तरम् अर्धरज्जुपर्यन्तं । शतारसहस्रार वर्गयुगलं भवति । ततोऽप्यर्थरखुपर्यन्तम् मानतप्राणतमामखर्गयुगलम्। ततः परमधरजुपर्यन्तमाका याबदारणाच्युताभियानस्वर्गद्वय शासम्पमिति । षोडशखदूमेकरजमध्ये नववेय कनवानुदिशपश्चानुत्तरविमानवासिंदेवास्तिष्ठन्ति । ततः परतग द्वादशयोजनेषु गतेष्वटयोजनबाहुल्या मनुष्यलोकवत् पखाधिकचत्वारिंशवक्षयोजनविखारा ४५०.... मोक्षशिला भवति। तस्य उपरिषनोदधिषनदाततनुपातत्रयमखि । सत्र ततुवातमध्ये लोकान्ते केवलज्ञानाचनम्तगुणसहिताःतिसाच विहन्तीतिः बहोए गारया होति, अधोलोकेअधोमागे मेरोराधारभूता रमप्रभाख्या प्रथमपृषिवी, तस्यास्तृतीये असमागे अशीतिसहस्रयोजनवाहस्ये रमप्रभाभूमी पर्मानाम्नि प्रथमनरके त्रयोदशपटलेषु शिक्षविलेषु३०.....भारतभवन्ति विन्ति । शर्करापभाभूमौ वंशानामनि द्वितीयनरके एकादशपटलेषु पञ्चविंशविलक्षविले हारकाः सन्ति । पाका उससे मी दस योजन ऊपर जाकर सूर्योके विमान हैं । उससे ऊपर वस्सी योजन जाकर चन्द्रमाओंके विमान है। उससे मी चार योजन ऊपर जाकर अश्विनी आदि नक्षत्रोंके बिमान हैं । उससे ऊपर चार योजन जाकर बुधग्रहोंके विमान हैं। उससे ऊपर तीन योजन जाकर शुक्रग्रहों के विमान हैं । उससे ऊपर तीन योजन जाकर बृहस्पति ग्रहोंके विमान हैं । उससे ऊपर तीन योजन जानेपर मंगलग्रहोंके विमान है। उससे मी ऊपर तीन योजन जानेपर शनिग्रहोंके विमान हैं। कहा मी है-७९० योजनपर तारा है, उससे दस योजन ऊपर सूर्य है। सूर्यसे अस्सी योजन ऊपर चन्द्रमा है । चन्द्रमासे चार योजनपर नक्षत्र और नक्षत्रसे चार योजनपर बुध है । बुधसे तीन योजनपर शुक्र, उससे तीन योजन ऊपर वृहस्पति, उससे तीन योजन ऊपर मंगल और उससे तीन योजन ऊपर शनि है। इस तरह एक सौ दस योजनकी मोटाईमें चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और प्रकीर्णक तारोंके विमान रहते हैं । और कल्पवासी देव ऊर्यलोकमें रहते हैं। सो पुमेरु पर्वतकी चूलिका (चोटी) का विस्तार नीचे बारह योजन, मध्यमें आठ योजन और ऊपर चार योजन है तथा ऊँचाई चालीस योजन है | उस चूलिकासे ऊपर उत्तरकुरु भोगभूमिके मनुष्य के बालके अप्रभाग जितना अन्तर देकर ऋजु नामक विमान है । उस जु विमानसे लेकर चूलिका सहित मेरुकी ऊँचाई एक लाख चालीस योजनसे हीन डेद राजू प्रमाण आकाश प्रदेश पर्यन्त सौधर्म और ऐशान नामका खर्गयुगल है। उससे ऊपर डेद राजु तक सनत्कुमार और माहेन्द्र नामका खर्गयुगल है। उससे ऊपर आधा राजु आकाशपर्यन्त ब्रा और ब्रह्मोत्तर नामका वर्गयुगल है। उससे ऊपर आधा राजुपर्यन्त लान्तव और कापिष्ट नामका खर्गयुगल है। उससे ऊपर आधा राजुपर्यन्त शुक्र और महाशुक्र नामका वर्गयुगल है। उससे ऊपर आधा राजु पर्यन्त शतार और सहस्रार नामका खर्गयुगल है । उससे ऊपर आधा राजुपर्यन्त आनत और प्राणत नामका खर्गयुगल है । उससे ऊपर आधा राजु पर्यन्त आरण और अध्युत नामका वर्ग युगल है । इन सोलह स्वगीसे ऊपर एक राजुके भीतर नौ प्रैवेयक, नौ अनुदिश और पांच अनुत्तर विमानोंके वासी देव रहते हैं । अनुत्तर विमानोंसे बारह योजन ऊपर जानेपर उसी एक राजुके भीतर आठ योजनकी मोटी सिद्धशिला है, जिसका विस्तार मनुष्यलोककी तरह पैतालीस लाख योजन है । उसके ऊपर घनोदधिवात, घनवात और तनु वात नामके तीन वातत्रलय हैं | उनमेंसे लोकके अन्तमें तनुवासवलयमें केवल झान आदि अनन्त गुणोंसे युक्त सिद्ध परमेष्टी विराजमान हैं । इस तरह ऊर्ध्व लोकमें वैमानिक देवोका निवास है । तथा अधोलोकमें नारकी रहते हैं । सो अधोलोकमें मेरु पर्वतकी आधारभूत रनप्रभा नामकी पहली पृपियी है।
SR No.090248
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumar Swami
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages589
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size19 MB
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