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________________ सामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा [गा० १४७प्रभापृथिव्यां मेघानाम्नि तुवीयनरके नषपटकस्थितपश्चदशलक्षविलेषु नारकाः स्युः। पाप्रभामा अधानानामचतुषनरके सप्तपत्लास्थितपालक्षपिछेषु मारका वियन्ते । धूमप्रभाथिष्यां रिष्टानामपञ्चमनरके पचपदलस्थितत्रिमक्षविलेषु नारका भवन्ति। समःप्रभाभूमी मघवानामषष्टनरके त्रिपटलस्थितपोनलक्षविलेषु नारकाः सन्ति। मातमःप्रभाभूमी सप्तमे नरके एकपटलस्थितपञ्चविलेषु भारका भवन्ति । एवमेकोनपञ्चाशत्पटलस्थित ४५ चतुरसीविलक्ष ..... मरकविलेषु पूर्वपापोदयकर्म पीडिताः पत्रकारदुःसाकान्ता मारका भवन्ति । रमप्रमादिथिवीन प्रत्येक घनोदविपनवाततमुवातवमाधारभूतं भवतीति विहेयम् । अच्छणं स्थानं गतम् ॥ १४६॥ अथ तेजस्काधिकादिबीवाना संस्थां गायापश्चकेनाह बादर-पजत्ति-जुदा घण-आवलिया-असंख-भागा दु। किंचूर्ण-लोय-मित्ता तेज-घाऊ जहा-कमसो ॥ १४७॥ [छाया-बादरपर्याप्तियुताः घनावलिका-असंख्मभागाः तु । लविनलोकमात्राः तेजोवायवः यथाक्रमशः] सवाकमशः अनुक्रमतः, तेज तेजस्कायिका जीवा बादराः स्थूलाः पर्याप्तियुकाः बनावलिकाऽसंख्यमागमात्रा। तु पुनः, पायुकायिकाः प्राणिनः बादराः स्थूलाः पर्यामाः निविभ्यूनलोकभाषाः । गोम्मटसारे व तन्मानमुकमा उसके तीन भाग हैं । तीसरा अम्बहुल भाग अस्सी हजार योजन मोटा है। उसमें धर्मा नामका प्रथम • नरक है । उस नरकमें तेरह पटल हैं, और तेरह पटलोंमें तीस लाख बिल हैं । उन बिलोंमें नारकी रहते हैं। उसके नीचे शर्कराप्रभा नामकी भूमिमें वंशा नामका दूसरा नरक है। उस नरकमें ग्यारह पटल है और उन पटलोंमें पच्चीस लाख बिल हैं। उन बिलोंमें नारकी रहते हैं। उसके नीचे वालकाप्रभा नाममा यिधीमें मेधा न समस्या है। उसमें नौ पटल हैं । उन पटलोंमें पन्द्रह लाख बिल हैं। उन बिलोंमें नारकी रहते हैं। उसके नीचे पक्ष्यभा नामकी भूमिमें अंजना नामका चौथा नरक है । उस नरको सात पटल हैं । उन पटलोंमें दस लाख बिल हैं। उन बिलोंमें नारकी रहते हैं। उसके नीचे धूमप्रभा नामकी पृथिवीमें अरिष्टा नामका पांचवा नरक है । उस नरक में पांच पटल हैं। उन पटलोंमें तीन लाख बिल हैं। उन बिलोंमें नारकी रहते हैं। उसके नीचे तमःप्रभा नामफी पृथ्वी में मघवी नामका छठा नरक है। उसमें तीन पटल हैं। उन पटलोंमें पांच कम एक लाख बिल है। उन बिलोंमें नारकी रहते हैं । उसके नीचे महातमःप्रभा नामकी पृथिवीमें माधवी नामका सातवा नरक है। उसमें एकही पटल है और उस एक पटलमें कुल पांच बिल हैं। उन बिलों में नारकी रहते हैं। इस तरह सातों नरकोंके १९ पटलोंमें कुल चौरासी लाख बिल हैं । और इन बिलोंमें पूर्वजन्ममें उपार्जित पापकर्मसे पीड़ित और पांच प्रकारके दुःखोंसे घिरे हुए नारकी निवास करते हैं । रमप्रभा आदि सातों पृथिवियों से प्रत्येकके आधारभूत घनोदधि, घन और तनु ये तीन वातवलय हैं ॥ १४६ ।। अब पांच गाथाओंसे तेजस्कायिय आदि जीवोंकी संख्या कहते हैं। अर्थ-बादर पर्याप्त तेजस्कायिक और वायुकायिक जीव क्रमसे घनावलीके असंख्यातवें भाग और कुछ कम लोक प्रमाण है ॥ भावार्थ-कमानुसार बादर पर्याप्त तेजस्कायिक जीव घनाबलिके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं । और बादर पर्याप्त वायुकायिक जीव कुछ कम लोक प्रमाण है । गोम्मटसारमें उनका प्रमाण इस प्रकार बतलाया है-'धनावलीके असंख्यातवें भाग प्रमाण तो बादर पर्याप्त तेजस्कायिक जीव हैं और लोक सग वादर। २ स ग किंचूणा ।
SR No.090248
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumar Swami
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages589
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size19 MB
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