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________________ 1 -१४१] १०. लोकानुप्रेक्षा ७९ पानायूरूपाः दश प्राणाः १० भवन्ति ॥ वीर्यान्तरायमतिज्ञानावरणक्षयोपशमजनिताः स्पर्शनरसनप्राणचक्षुः धोत्रेन्द्रियमनोवलप्राणाः ६ भवन्ति । शरीरनामकर्मोदये सति कायबलप्राणाः अनप्राणश्च भवन्ति २ । शरीर नामकर्मोदये स्वरनामकमदये च वचो बलप्राणो भवति १ । आयुः कर्मोदये आयुः प्राणो भवति १ एवं प्राणानामुत्पत्तिसामभी सुचिता ॥ १४० ॥ अथ द्विविधानामपर्याप्तानां प्राणसंख्यां विभजति– दुविहाणमपुण्णाणं इगि' - वि-ति- चउरक्ख- अंतिम दुगाणं । तिय च पण छह सत्त य कमेण पाणा मुणेयता ॥ १४१ ॥ [छाया-- द्विविधानाम् अपूर्णानाम् एकद्वित्रिचतुरक्षान्तिमद्विकानाम् । श्रयः चत्वारः पट षद् सप्त च क्रमेण प्राणाः ज्ञातव्याः ।। ] द्विविभागामपूर्णानां निर्वृत्यपर्याप्तानां लब्ध्यपर्याप्तानां च । इगि इत्यादि एकद्वित्रिश्चतुरक्षान्तिमद्विकानाम् एकेन्द्रियन्त्रन्द्रियाद्वारे न्द्रियासं शिपत्रियाणां क्रमेण आणाः मन्तव्याः शातव्याः । कतितीत्यादि त्रयश्वत्वारः पञ्च षट् सप्त च ज्ञातव्याः । तथा हि नित्यपर्यातकलव्ध्यपर्याप्तकामा मेकेन्द्रिय जीवाना स्पर्शनेन्द्रियकाय वायुः प्रणाश्रयो भवन्ति ३, न तु निश्वासोच्छ्वासः । नित्यलब्ध्यपर्याप्तानां द्वीन्द्रियजीनाना स्पर्शनरसनेन्द्रियकायमायुः प्राणाश्चत्वारो ४ विद्यन्ते नतु भाषोच्छ्वासो । निर्वृस्यलब्ध्यपर्याप्तानां त्रीन्द्रियजीवानां स्पर्शनरखनाणेन्द्रियकाय वायुः प्राणाः पत्र ५ सन्ति न तु भाशेवासी । निरृत्यलब्ध्यपर्याप्तानां चतुरिन्द्रियजीवानां स्पर्शनर सनघ्राणचक्षुरिन्द्रियकाय भल।युः प्राणाः षट् ६ स्युः, न तु निश्वासभाषाप्राणो । निर्ऋत्यलन्ध्यपर्याप्तानाम् असंक्षिजीवानां प्राणोंसे स्पर्शन, रसना, प्राण, चक्षु और श्रोत्र ये पांच इन्द्रियां और मनोबल प्राण वीर्यान्तराय और मतिज्ञानावरण कर्मके क्षयोपशम से होते हैं। शरीर नाम कर्मका उदय होनेपर कायबल प्राण और बसोवास प्राण होते हैं। शरीर नाम कर्म और खरनामकर्मका उदय होनेपर वचनबल प्राण होता है। और आयुकर्मका उदय होनेपर आयुप्राण होता है। इस तरह प्राणोंकी उत्पत्तिकी सामग्री बतलाई है ॥ १४० ॥ अब दोनों प्रकारके अपर्याप्तकोंके प्राणोंकी संख्या कहते हैं । अर्थदोनों प्रकारके अपर्याप्त एकेन्द्रिय, दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय, असंज्ञी पश्चेन्द्रिय और संत्री पश्चेन्द्रिय जीवोंके क्रमसे तीन, पांच, छः और सात प्राण जानने चाहिये । भावार्थ- दोनों प्रकारके अपर्याप्त अर्थात् निर्वृत्यपर्याप्त और लब्ध्यपर्याप्त एकेन्द्रिय, दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौहन्द्रिय असंज्ञी प न्द्रिय और संज्ञी पचेन्द्रिय जीवोंके क्रमसे तीन, चार, पांच, छः और सात प्राण होते हैं अर्थात् निर्वृत्यपर्याप्त और लब्ध्यपर्याप्त एकेन्द्रिय जीवोंके स्पर्शन इन्द्रिय, कायबल, आयु ये तीन प्राण होते हैं, श्वासोच्छ्वास प्राण नहीं होता । निर्वृत्थपर्याप्त और लब्ध्वपर्याप्त दो इन्द्रिय जीवोंके स्पर्शन और रसना इन्द्रिय, कायबल, आयु, ये चार प्राण होते हैं, बचनबल और श्वासोच्छूास प्राण नहीं होते। निर्दृश्यपर्याप्त और लब्ध्यपर्याप्त तेइन्द्रिय जीवोंके स्पर्शन, रसना और प्राण इन्द्रिय, कायबल और आयु ये पांच प्राण होते हैं, वचनबल और श्वासोच्छ्वास प्राण नहीं होते । निर्वृत्यपर्याप्त और लब्ध्यपर्यास चौsन्द्रिय जीवोंके स्पर्शन, रसना, प्राण और चक्षु इन्द्रिय, कायबल और आयु ये छः प्राण होते हैं, वचनबल और श्वासोच्छ्वास प्राण नहीं होते । निरृत्यपर्याप्त और लब्ध्यपर्याप्त असंज्ञी पश्चेन्द्रिय तथा संझी पञ्चेन्द्रिय जीवोंके स्पर्शन, रसना, प्राण, चक्षु और श्रोत्र इन्द्रिय, कायबल और आयु ये सात प्राण होते हैं, वासोच्छ्रास वचनबल और मनोबल प्राण नहीं होते । शङ्का पर्याप्त और प्राणमें क्या भेद है ? समाधान -- आहारवर्गणा, भाषावर्गणा और मनोवर्गणाके परमाणुओंको आहार, शरीर, I I १ ग इग "
SR No.090248
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumar Swami
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages589
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size19 MB
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