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________________ स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा [ गा० १४० जीविष्यति जीवितपूर्वो वा यो व्यवहारनमात् स जीवः ) (सत्ताचैतन्यसुखबोधादयः शुद्धभावप्राणाः ॥ १३९ ॥ अकेन्द्रमादीनां पर्याप्तानां प्राणसंख्यां ख्यापयति ७८ एक्खे व पाणाविति चउरिदिय असण-सणीणं । छह सत्त अ' णवयं दह पुण्णाणं कमे पाणा ॥ १४० ॥ अवा-का हरिया वशिनाम् । षट् सप्त अष्ट नव दश पूर्णानां क्रमेण प्राणाः ॥ ] क्रमेण एकेन्द्रियादिपर्याप्तकेषु चतुः षट्सप्ताष्टनवदशप्राणा भवन्ति । तथा हि । पृथिव्यप्तेजोशयुवनस्पतिकायिकान पर्यातकजीवाना स्पनेन्द्रिय कार्याोच्छ्वास निः श्वासायुः कर्मरूपा बरवारः प्राणाः ४ भवन्ति । शङ्खतिकवर टिक जाली का दि चीन्द्रिर्याकजीवन स्पर्धानरसनेन्द्रिय कायवचनानप्राणायुरूपाः षट् प्राणाः ६ स्युः । कुन्थुयूका मत्कुणवृश्चिकादि -- श्रीन्द्रियपर्यातकजीवानां स्पर्शनरसनप्राणेन्द्रियकायवचननिःश्वासोच्छ्वासा दुर्लक्षणाः सप्त प्राणाः सन्ति दंशमशकपतंग -- भ्रमराणि चतुरिन्द्रियपर्याप्ताना स्पर्शन र सनम्राणचक्षुरिन्द्रियकामवचनानप्राणायूरूपाः अष्टौ ८ प्राणाः । असशिनाम् अमनस्कानt विर पञ्चेन्द्रियपय साना स्पर्शनर सनघ्राणचष्टुः श्रोत्रे न्द्रियकायवचनश्वासोच्छ्वासायुः कर्मरूपाः नव प्राणाः विद्यते संशिनां समनकानां देवमनुष्यादीनां पञ्चेन्द्रियपर्याप्ताना स्पर्शनरसनघ्राणचष्टुः श्रोत्रेन्द्रियमनोवचनकाय प्राणा 1 अपने योग्य प्राणोंसे वर्तमानमें जीता है, भविष्य में जियेगा और भूतकालमें जिया है, व्यवहारनयसे वह जीव है । तथा सत्ता, चैतन्य, सुख और ज्ञान आदि शुद्ध भाव प्राण हैं। आशय यह है कि ऊपर जो दस प्राण बतलाये हैं वे द्रव्य प्राण हैं, जो संसारी जीवोंके पाये जाते हैं । किन्तु मुछावस्थामें ये द्रव्य प्राण नहीं रहते, बल्कि सत्ता आदि शुद्ध भाव प्राण रहते हैं। ये भाव प्राण ही जीवके असली प्राण हैं; क्योंकि इनके बिना जीवका अस्तित्व ही नहीं रह सकता । अतः निश्वयनयसे जिसमें ये शुद्ध भाव प्राण पाये जाते हैं वही जीव है । यद्यपि संसारी जीवमें भी ये भाव प्राण पाये जाते हैं, किन्तु वे शुद्ध भाव प्राण नहीं है | १३९ || अब एकेन्द्रिय आदि पर्याप्त जीवोंके प्राणोंकी संख्या बतलाते हैं। अर्थ - पर्याप्त एकेन्द्रिय जीवके चार प्राण होते हैं और पर्याप्त दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय, असंज्ञी पश्चेन्द्रिय और संज्ञी पश्चेन्द्रिय जीवके क्रमसे छः, सात, आठ, नौ और दस प्राण होते हैं || भावार्थ- पर्याप्त एकेन्द्रिय आदि जीवोंके क्रमसे चार, छ, सात, आठ, नौ और दस प्राण होते हैं । जिसका विवरण इस प्रकार है- पृथिवीकायिक, जलकायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक पर्याप्तक जीवोंके स्पर्शन इन्द्रिय, कायबल, श्वासोच्छ्रास और आयुकर्म, ये ४ प्राण होते हैं । शंख, सीप, कौडी जोंख आदि दो इन्द्रिय पर्याप्तक जीवोंके स्पर्शन और रसना इन्द्रिय, कायबल, वचनबल, श्वासोच्छ्रास और आयु, ये छ प्राण होते हैं। कुंथु, जं, खटमल बिच्छु वगैरह इन्द्रिय पर्याप्त जीवोंके स्पर्शन, रसना और प्राण इन्द्रिय, कायबल, वचनबल, श्वासोच्छ्रास और ये सात प्राण होते हैं । डांस, मच्छर, पतङ्ग, भौंरा आदि चौइन्द्रिय पर्याप्तक जीवोंक स्पर्शन, रसना, घाण और चक्षु इन्द्रिय, कायबल, वचनबल, वासोच्छ्वास और आयु ये आठ प्राण होते हैं । असैनी पञ्चेन्द्रिय पर्याप्तक तिर्यश्चों के स्पर्शन, रसना, प्राण, चक्षु और श्रोत्र इन्द्रिय, कायबल, वचनबल, वसोवास और आयु ये नौ प्राण होते हैं। सैनी पञ्चेन्द्रिय पर्याप्तकोंके स्पर्शन, रसना, प्राण, चक्षु और श्रोत्रेन्द्रिय, मनोबल, वचनबल, कायबल, श्वासोच्छ्रास और आयु ये दस प्राण होते हैं । इन दस १ ब सचद्ध
SR No.090248
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumar Swami
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages589
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size19 MB
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