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१० छोकातुमेशा
अपि च भोवला भोम-भूमिगताखियो गर्भभषा एवं गर्भोपवा भवन्ति, न तु संमूर्च्छनाः । वलचरणभोगाधिनः स्थळ गामिनः गोमदेव मृगादयः १, नभोगामिनः हंसमयूराकादयः १, न तु जलचराः, शिन एम, म तु व्यशिनः ॥ १३० ॥ अम तिर जीवसमास मेदामाह
अवि भज दुविहा तिविहा 'समुच्छिणो वि तेवीसा । हृदि पणसीदी भेयां सब्वेसिं होंति तिरियाणं ॥ १३१ ॥
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[ छाया-अशे अपि मर्मजाः द्विविधाः त्रिविधाः संमूर्च्छनाः अपि त्रयोविंशतिः । इति पचाशीतिः भेदाः सर्वेषां भवन्ति तिराम् ॥ ] सर्भवाः गर्भेस्पाः कर्मभूमि गर्भजविर्यवो जलबराः मत्स्यादमः शिनः अशिनव म, कर्मभूमिजगर्भजविर्यश्वः स्वराः मृगादयः संशिनः असिमख २ कर्मभूमियम जतिर्यथः भमबराः पक्ष्याश्यः संशिनः असैशिनथ २, भोगभूमिजस्थलचरतिर्जयः भ्रंशिन एवं १, भोगभूमिजन बरतिर्वधः शिन एवं १, एवम् भ्रष्टावपि च ते द्विविधा द्विप्रकाशः, पर्याप्ता निवृत्यपर्यासाब, इदि गर्भनविदा पोडशमेदाः १६ । अपि पुनः संमूर्च्छनाः त्रयोविंशतिमेदा भवन्ति । तथा हि । पृथिवीकायिकाः सूक्ष्मकारा छवि १, अकामिका सूक्ष्मवादरा इति द्वौ २, तेजस्कामिकाः सूक्ष्मबावरा इति द्वौ २, वायुका विकाः सूक्ष्मवादरा इविंदौ २, नित्यनिगोदसाधा रणवनस्पतिकायिकाः सूक्ष्मवादरा इति द्वौ २, चतुर्थ तिनि सोदसाधारण वनस्पतिकःमिताः सूक्ष्मयात्रा इति नया भनिन्तानन्त जीवानां दहावीति निगोदम् ) निगोएं शरीरे देव से निगोदारा इति निरुकेः । प्रतिष्ठित प्रत्येकमनस्पतिकायिका बादरा एवेत्येकः १ नप्रविधिप्रस्कवनस्पतिकाका बादरा एवेत्येकः १, इसोफेन्द्रियस्य चतुर्दशमेदाः १४ पांशुतयादयो द्वन्द्रिया १, कुन्युपिपीलिकाइयत्रीन्द्रियाः २, शमशकावयवतुरिन्द्रियाः ३, इति विकलत्रयाणां त्रयो मेदाः । कर्मभूमिजलचरति चपश्चेन्द्रियर्धशिनः असंज्ञिनथ इति द्वौ २, कर्मभूमिजस्थलचरपये न्द्रियतिर्यधः सेशिनः मशिन इवि द्वी २, कर्मभूमिजनभश्वरपक्षेन्द्रिय तिर्यथः संशिनः असंज्ञिनव इवि हो २, इति कर्मभूमिजतिरवां पञ्चेन्दिवाणं पट्टेदाः ६ ।
नहीं होते । और भोगभूमिमें गो, भैंस, हिरन वगैरह पलचर तिर्यश्च तथा हंस, मोर, तोता वगैरह नभचर तिर्यञ्च ही होते हैं, जलचर तिर्यश्व नहीं होते। तथा ये सब पचेन्द्रिय तिर्यश्व संत्री ही होते हैं, असंही नहीं होते ॥ १३० ॥ अब तिर्यमें जीवसमासके भेद बतलाते हैं । अर्थ-आठों ही गर्मजोंके पर्याप्त और अपर्याप्तकी अपेक्षा सोलह भेद होते हैं। और तेईस सम्मूर्छन जन्म वालोंके पर्याप्त निवृत्यपर्याप्त और लब्ध्यपर्याप्तकी अपेक्षा उनहत्तर भेद होते हैं। इस तरह सब तिर्यञ्चके पिचासी भेद होते हैं || भावार्थ - कर्मभूमिया गर्भज तिर्यश्च जलचर, जैसे मछली गैरह। ये संज्ञ और असंज्ञीके मेदसे दो प्रकारके होते हैं । २ । कर्मभूमिया गर्भज तिर्यन धलचर, जैसे हिरन वगैरह, मे भी संज्ञी और असंज्ञीके मेदसे दो प्रकारके होते हैं । २ । कर्मभूमिया गर्भज तिर्यद्य नभचर, जैसे पक्षी वगैरह, ये मी संज्ञी और असंज्ञीके भेदसे दो प्रकार के होते हैं । २ । भोगभूमिया क्लचर तिर्यश्च संज्ञी ही होते हैं । १ । और भोगभूमिया नभचर तिर्पश्च मी संज्ञी ही होते हैं । १ । इस तरह ये आठही कर्मभूमिया और भोग भूमिया गर्भज तिर्यश्च पर्याप्त मी होते हैं और निवृत्त्यपर्याप्त भी होते हैं। अतः गर्भज तिर्यों के सोलह भेद होते हैं। तथा सम्मूर्छन जन्मवाले तिर्यञ्चोंके तेईस भेद होते हैं, जो इस प्रकार हैंसूक्ष्म पृथिवी कायिक, बादर पृथिवीकायिक, सूक्ष्म जलकायिक, बादर जलकायिक, सूक्ष्म तेजस्कायिक, श्रादर तेजस्कायिक, सूक्ष्म वायु कायिक, बादर वायु कायिक, सूक्ष्म नित्य निगोद साधारण वनस्पतिकायिक,
११ मैदा