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________________ ६८ सामिकार्तिकेयानुसा [गा-१३०त्रिप्रकास पथकाकासयामिमो मेवात्। केचन जळयारिणो मरणकर्मावयःचन स्वचाविक गोमहिरव्ययाकसिंहमृगक्षणकादयः ।२ । केवन गावागामिनः शुककामाचटकासारसाईसमयूरादकः । व पुनः, जलमामिप्रमशास्तिर्यवो जीवानिविधा थपि, प्रत्येक एक एवं प्रति प्रत्येके, द्विविधा भवन्ति । तेकाएक मानामिकापजाम येतख युकाः हिताः संशिनस्तिर्गको जीपा । एके नानाविकल्पजापानमा अयुताः नानाविकल्पबारमनोरहिता मशिनः पादयः । तथा विजलपरतिषी पायसशिनी, स्थलचरतिर्मयो संश्वसंज्ञिनौ, नमःस्पतिर्मयो संश्यसशिनी, इत्यर्थः ॥ १२९ ॥ अथ तेषां सिरसा भेदानाह ते वि पुणो विम दुविहा गम्भज-जम्मा तहेव संमुछा। भोग-भुवा गम्भ-भुवा थलयर-णहे-गामिणो सण्णी ॥ १३०॥ [मावा-ते अपि पुनः अपि च द्विविधाः गर्भजजन्मानः तपैव संमूर्छनाः । भोगभुवः मर्मभुवः स्वम्बर नभोगामिनः संशिनः ॥] पुनः तेऽपि पूर्वोचकाः पहिचारिहर्ययो द्विविधा द्विप्रकाराः । एके पर्भजन्मानः, जाबमामश्रीवेन शाकयोगितरूपापिन्सस्स मरणे सरीरतयोपादान गर्भः ततो जाता ये मर्मजाः तेषां गर्भजानां जन्म उत्पत्तियां ते गर्भअन्मान: मातम ममत्पशा रार्थ: । तशेष संमळना-गर्भोत्पादरहिताः (से समन्तात् मूर्छनं जायमानजीवानुमाइनर्णा" जीवोपकारापा शरीराबरपरिणमनयोग्यपुनमस्कन्धानां समच्छ्रमण तत् विद्यते पेषो ते समूच्र्छनचरीराः ।। नभचर । इन तीनोभेसे प्रत्येकके दो दो भेद हैं-एक मन सहित सैनी और एक मन रहित असैनी ॥ भावार्थ-पश्चेन्द्रिय नाम कर्मके उदयसे तिर्यश्च जीव पश्चेन्द्रिय होते हैं । पश्चेन्द्रिय तिर्यश्च जीवोंके तीन भेद हैं-जलचर, यलचर और नभचर । अर्थात् कुछ पञ्चेन्द्रिय जीव जलचर होते हैं। जैसे मछली, कछुआ वगैरह। कुछ पल पर होते हैं-जैसे हाथी, घोड़ा, गाय, भैंस, व्याध, भेड़िया, सिंह, मृग, खरगोश, वगैरह । और कुछ पञ्चेन्द्रिय जीव नभचर होते हैं, जैसे तोता, कौआ, बगुला, विडिया, सारस, हंस, मयूर, वगैरहा इन तीनों प्रकार के तिर्यश्चोंमेसे मी प्रत्येकके दो दो भेद होते हैं-एक अनेक प्रकारके संकल्प विकल्पसे युक्त मन सहित सैनी तिर्यश्च और एक अनेक प्रकारके संकल्प विकल्प युक्त मनसे रहित असैनी तिर्यश्च । अर्थात् सैनी जलचर तिर्यश्च, असैनी जलचर तिर्थञ्च, सैनी थलचर तिर्यन असनी थलचर तिर्यन, सैनी नभचर तिर्यन, असैनी नभचर तिर्यश्च । इस तरह पञ्चेन्द्रिय तिर्योंके छ: भेद हुए ॥ १२९ ॥ अब इन तिर्योंके भी भेद कहते हैं। अर्थ-इन छ: प्रकारके तिर्योंके भी दो भेद हैं--एक गर्भजन्म वाले और एक सम्मूर्छन जन्म वाले । किन्तु भोग भूमिके तिर्यश गर्भज ही होते हैं। तथा वे घलन्चर और नभचर ही होते हैं, जलचर नहीं होते। और सब सैनी ही होते हैं असैनी नहीं होते ॥ भावार्थ-वे पूर्वोक्त छ: प्रकारके तिर्यच मी दो प्रकारके होते हैं-एक गर्भजन्म वाले और एक सम्मूर्छन्न जन्म वाले। जन्म लेने वाले जीवके द्वारा रज और वीर्य रूप पिण्डको अपने शरीर रूपसे परिणमानेका नाम गर्भ है। उस गर्भसे जो पैदा होते हैं उन्हें गर्भजन्म वाले कहते हैं । अर्थात् माताके गर्भसे पैदा होने वाले जीव गर्भजन्मवाले कहे जाते हैं। शरीरके आकाररूप परिणमन करनेकी योग्यता रखनेवाले पुद्गल स्कन्धोका चारों ओरसे एकत्र होकर जन्म लेने वाले जीवके शरीर रूप होनेका नाम सम्मुर्छन है और सम्मूईनसे जन्म लेने वाले जीव सम्पूर्छन जन्म वाले कहे जाते हैं। किन्तु भोगभूमिया तिर्यश्च गर्भज ही होते हैं, सम्मूर्छन जन्माले १. भुया । २ नम। कमवायते कारणं ।
SR No.090248
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumar Swami
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages589
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size19 MB
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